भारत को COP28 में जलवायु वित्त पोषण पर स्पष्ट रूपरेखा बनने की उम्मीद : विनय क्वात्रा

भारत को COP28 में जलवायु वित्त पोषण पर स्पष्ट रूपरेखा बनने की उम्मीद : विनय क्वात्रा

प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली :

विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दुबई यात्रा से पहले गुरुवार को कहा कि भारत को दुबई में सीओपी28 (CPO28) में जलवायु वित्त पोषण पर एक स्पष्ट रूपरेखा पर सहमति बनने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री मोदी, विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के अलावा तीन अन्य उच्च स्तरीय कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आज दुबई रवाना होने वाले हैं.

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मोदी शुक्रवार को जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CPO28) के दौरान विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. विश्व के कई नेता ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे.

शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के भारत के महत्वाकांक्षी जलवायु एजेंडे और संबंधित मुद्दों को रेखांकित करने की उम्मीद है. प्रधानमंत्री शुक्रवार की रात में दिल्ली लौटेंगे. अपनी इस यात्रा के दौरान वह तीन अन्य उच्च स्तरीय कार्यक्रमों में भी भाग लेंगे.

विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन सीओपी28 का उच्च-स्तरीय प्रकोष्ठ है. सीओपी28 संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की अध्यक्षता में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक आयोजित हो रहा है.

क्वात्रा ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमारा स्पष्ट दृष्टिकोण और प्राथमिकता रही है कि जलवायु वित्तपोषण और जलवायु प्रौद्योगिकी पर्यावरणीय क्षय की चुनौती से निपटने के वैश्विक प्रयासों का एक बहुत ही अहम हिस्सा है.’

उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि सीओपी28 में जलवायु वित्त के संबंध में स्पष्ट रोडमैप पर सहमति बनेगी जो नए, सामूहिक, मात्रात्मक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अहम होगा.’

क्वात्रा ने कहा, ‘भारत उन कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को पूरा करने की दिशा में अग्रसर हैं.’

प्रधानमंत्री मोदी की दुबई यात्रा के संबंध में क्वात्रा ने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने और ‘इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे’ पर वैश्विक सहमति बनाने के लिए प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का अवसर देगा.

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी-28 (सीओपी28) एक ऐसा सम्मेलन है जिसमें विश्व के नेता, नीति निर्माता, वैज्ञानिक और कार्यकर्ता जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए एकत्रित होते हैं. इसकी शुरुआत 2010 में हुई थी.

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