भारत को एक धागे में पिरोने में कामयाब थे मौलाना मोहम्मद अली जौहर

अंजू प्रजापति/रामपुरःभारत की आजादी के लिए लाखों स्वाधीनता सेनानियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया था. ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी के बारे मेंआज आपको बताते हैं. जिनका सीधे सम्बंध रामपुर से था और जिनका पूरा जीवन स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और साम्प्रादायिक एकता को एक सूत्र में पिरोने में व्यतीत हुआ था.

मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसम्बर 1878 में रामपुर में हुआ. जो भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और शिक्षावादी थे. मुजाहिद ए आजादी का उनमें एक जज्बा था और उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रयासों में एक बड़ी भूमिका निभायी थी. मौलाना रोहिलात्री के यूसुफज़ई कबीले से ताल्लुक रखते थे साथ ही देश को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिए थे.

महात्मा गांधी का विश्वास जीता
मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने अंग्रेज़ों की खिलाफत और भाईचारे की एकता कायम करने के लिए अपने जीवन में अनेक संघर्ष किये. अंग्रेज़ शासकों के ज़ुल्म सहे थे और अपने जीवन के कई वर्ष उन्होंने में जेल में गुजारे.  1915 में गिरफ्तार कर चार वर्ष के लिए जेल भेज दिया था. मोहम्मद अली ने ‘खिलाफत आन्दोलन’ में अपना योगदान दिया और महात्मा गांधी के विश्वासपात्र बन गये.

अली जौहर ने अंग्रेजी पढ़ना शुरू की
इतिहासकार डॉक्टर ज़हीर सिद्दीकी के मुताबिक मौलाना मोहम्मद अली जौहर का रामपुर में घर था. वह भाटिया भवन में तब्दील हो चुका है और उनका एक बंगला भी हुआ करता था. जिसमें इस वक्त ग्रीन वुड स्कूल है जौहर ने तालीम के सिलसिले में 1888 में रामपुर में एक अंग्रेजी मदरसा खोला और इस मदर में मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया. जौहर के पूर्वज नजीबाबाद के थे और वे 1857 में अंतिम मुगल राजा बहादुर शाह जफर की रक्षा के लिए दिल्ली आए थे. 1857 में आजादी की लड़ाई में जौहर के लगभग 200 रिश्तेदार शहिद हुए. जिसके बाद मौलाना मोहम्मद अली के दादा रामपुर आ गए और यही रहने लगे.

मैं मौत को पसंद करूंगा
सन् 1930 में मोहम्मद अली जोहर बीमार रहते हुए भी लंदन में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में लंदन गये थे. उन्होंने लंदन में अपनी मृत्यु के संदर्भ में स्मरणीय कथन कहा था की हिंदुस्तान तभी वापस जाऊंगा जब मेरे हाथ में आजादी का परवाना होगा तो आप मुझे आजादी देंगे या मैं मौत को पसंद करूंगा. लंदन में सम्मेलन के बाद उनकी तबियत और खराब होती गई थी और बीमारी के चलते 4 जनवरी 1931 को लंदन में ही उनका इंतकाल हो गया. उनकी इच्छा के अनुरूप उन्हें जेरूसलम में दफनाया गया. फिलिस्तीन के मुफ्ती अमीन अल-हुसैनी ने उन्हें मस्जिद अल-अक्सा के पास ही उनकी कब्र बनाई गई.

Tags: Rampur news

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