भारत को एक आत्मनिर्भर रक्षा अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता, बोले CDS चौहान

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जनरल चौहान ने कहा कि हमारी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अगर मैं एक मोटा अनुमान लगाऊं, तो आने वाले कुछ वर्षों में हमारा परिव्यय 25,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को कहा कि अब देश के लिए अत्यधिक सक्षम आत्मनिर्भर रक्षा अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का समय आ गया है। एसआईए-इंडिया द्वारा आयोजित डेफसैट सम्मेलन और एक्सपो को संबोधित करते हुए, सीडीएस चौहान ने कहा कि वर्तमान अवधि निजी क्षेत्र के लिए अमृतकाल हो सकती है। डेफसैट एक तीन दिवसीय अंतरिक्ष संगोष्ठी और प्रदर्शनी है, जिसका आयोजन बुधवार को दिल्ली कैंट के मानेकशॉ सेंटर में किया गया। सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि सरकार ने अंतरिक्ष संवर्धन से लेकर अन्वेषण तक देश के लिए बड़े लक्ष्यों की कल्पना की है।

जनरल चौहान ने कहा कि हमारी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अगर मैं एक मोटा अनुमान लगाऊं, तो आने वाले कुछ वर्षों में हमारा परिव्यय 25,000 करोड़ रुपये से अधिक होगा। निजी उद्योग के लिए इस अवसर का उपयोग करने का यह सही समय है। यह अवधि निजी अंतरिक्ष उद्योग के लिए अमृतकाल हो सकती है। मुझे लगता है कि अब एक अत्यधिक सक्षम आत्मनिर्भर रक्षा अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का समय आ गया है। उन्होंने रक्षा अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र के सभी हितधारकों से देश की अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिए एक निवारक के रूप में काउंटर-स्पेस क्षमताओं को बढ़ाने पर काम करने का भी आह्वान किया।

मानव जाति और युद्ध में लगे सशस्त्र बलों के लिए अंतरिक्ष की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए सीडीएस ने कहा कि भूमि, वायु, समुद्र और यहां तक ​​कि साइबर के पारंपरिक क्षेत्रों में युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष का उपयोग बल गुणक के रूप में किया जा सकता है। सीडीएस ने सशस्त्र बलों की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए अंतरिक्ष का लाभ उठाने के लिए सरकार की प्रमुख पहलों का उल्लेख किया, जिसमें iDEX पहल के तहत मिशन डेफस्पेस 2022 के हिस्से के रूप में 75 अंतरिक्ष-संबंधित चुनौतियां भी शामिल हैं।

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