ढाका5 घंटे पहले
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भारत के CJI डीवाई चंद्रचूड़ बांग्लादेश की राजधानी ढाका में ‘इक्कीसवीं सदी में दक्षिण एशियाई संवैधानिक न्यायालय: बांग्लादेश और भारत से सबक’ वाले दो दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह में पहुंचे थे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार (24 फरवरी) को कहा कि भारत और बांग्लादेश ने अपने संविधान को जीवित दस्तावेज (Living documents) के रूप में मान्यता दी है।
दोनों देश संवैधानिक और न्यायिक प्रणालियों की परंपरा को साझा करते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य यह है कि देश में स्थिरता बनी रहे। दोनों देशों का संविधान जनता ने जनता के लिए ही बनाया है।
CJI बांग्लादेश की राजधानी ढाका में ‘इक्कीसवीं सदी में दक्षिण एशियाई संवैधानिक न्यायालय: बांग्लादेश और भारत से सबक’ वाले दो दिवसीय सम्मेलन के समापन समारोह में पहुंचे थे। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस सम्मेलन की मुख्य अतिथि थीं।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 23 फरवरी को सम्मेलन का उद्घाटन किया था। बांग्लादेश के CJI ओबैदुल हसन ने इसकी अध्यक्षता की थी। बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के जज, देश के कानून मंत्री अनीसुल हक सहित कई लोग सम्मेलन में शामिल हुए थे।
दो दिवसीय सम्मलेन में बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना भी शामिल हुए थीं। वे कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ के संबोधन की मुख्य बातें…
- CJI अपने संबोधन में कहा, ‘हमारी साझा परंपरा का लक्ष्य स्थिरता सुनिश्चित करना है, लेकिन जब स्थिरता चाही हुई होती है तो उसे कभी भी ठहराव के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।’
- भारतीय और बांग्लादेशी अदालत प्रणालियों को विवाद सुलझाने के लिए मध्यस्थता की प्रथा को बढ़ावा देना चाहिए। ऐसे मुकदमे त्यागने चाहिए जो विपरीत हों।
- दोनों देशों में मुकदमेबाजी एक कॉलोनियल इम्पोर्ट है, जहां एक व्यक्ति जीतता है और दूसरा व्यक्ति अदालत में हारता है।
- किसी विवाद को सुलझाने के विकल्प की बात की जाए तो मध्यस्थता के जरिए सुलह कराना हमारे समाज में पारंपरिक तरीका था।
- वैवाहिक विवादों जैसी आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए मध्यस्थता अधिक वैधता के साथ फिर से सामने आई, जबकि यह प्रणाली दक्षिण एशियाई सामाजिक मानदंडों के जैसी है।
भारत और बांग्लादेश की अदालतें एक-दूसरे के फैसलों का बारीकी से पालन करती हैं- CJI
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत और बांग्लादेश की संवैधानिक अदालतें मौलिक अधिकारों, अधिकारों की समानता और मृत्युदंड और सार्वजनिक हित मुकदमेबाजी जैसे सामान्य मुद्दों पर एक-दूसरे के फैसलों का बारीकी से पालन करती हैं।
कोलोनियल के बाद के युग में दोनों देशों के जस्टिस की भूमिका में बदलाव आया। हमारी पारंपरिक भूमिका A और B के बीच विवाद को सुलझाने की है, लेकिन अब जज को भी सुविधाप्रदाता की भूमिका निभानी चाहिए। कोलोनियल काल में जज को पूरी तरह से अलग कार्य मिलते थे।
पीएम शेख हसीना ने कहा- न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र
सम्मेलन में PM शेख हसीना ने कहा- हमारी सरकार ने देश में न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र बनाया है। इसके लिए अलग बजट है, इसे प्रशासन से अलग रखा गया है। देश के लोगों को न्याय मिले। हमारी तरह वे भी अन्याय का शिकार नहीं होंगे। देशवासियों के न्याय पाने के लोकतांत्रिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुनिश्चित करना होगा।