भाई Vs भाई की दिलचस्प है कहानी, एक गफलत की वजह से अब आमने-सामने की लड़ाई

हाइलाइट्स

डॉ. सीताशरण शर्मा पांच बार और गिरजा शंकर शर्मा दो बार विधायक रह चुके हैं.
शर्मा परिवार से केएस शर्मा एमपी के चीफ सेकेट्री रह चुके हैं. उनका बेटा भी आईपीएस ऑफिसर है.

भोपाल. नर्मदा नदी के सेठानी घाट के लिए मशहूर नर्मदापुरम (पुराना नाम होशंगाबाद) में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है. यहां से शर्मा परिवार के दो भाई बारी-बारी से सात बार चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन इस बार किसी एक की हार तय है. क्योंकि, पहली बार दोनों एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में है.

भाजपा ने अपने कद्दावर नेता, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व मौजूदा विधायक डॉ. सीताशरण शर्मा को टिकट दिया है. जबकि, कांग्रेस ने उनके छोटे भाई गिरजा शंकर शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. गिरजा शंकर शर्मा ने साफ कर दिया है कि उन्हें कांग्रेस ने पहले ही टिकट दे दिया था, इसलिए अब वे मैदान से नहीं हटेंगे. जबकि डॉ. सीताशरण शर्मा ने भी साफ कर दिया है कि पार्टी ने टिकट दिया है तो यहां से जीत दर्ज उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेंगे. यानी कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ तो दो भाईयों में से किसी को ही जीत मिलेगी.

जमींदारी से रहा है शर्मा परिवार का नाता
नर्मदापुरम और इटारजी जैसे दो अहम शहरों वाली इस विधानसभा में शर्मा परिवार ही राजनीति का मुख्य चेहरा रहा है. परिवार के पास जमींदारी थी. सीताशरण शर्मा चार भाई हैं. उनके एक भाई कृपा शंकर शर्मा कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में मुख्य सचिव रह चुके हैं. अब बेटा भी आईपीएस है. शर्मा के एक और भाई भवानी शंकर शर्मा भी 1972 में चुनाव लड़ चुके हैं. वहीं, भाजपा से डॉ. सीताशरण शर्मा पांच बार विधायक रह चुके हैं. वे 1990, 1993 और 1998 में लगातार तीन बार विधायक रहे. फिर 2003 के चुनाव में पारिवारिक समझौते की वजह से उनकी जगह छोटे भाई गिरजाशंकर शर्मा चुनावी मैदान में उतरे. गिरजा शंकर शर्मा ने लगातार दो बार चुनाव जीता. लेकिन समझौते के चलते फिर 2013 में डॉ. सीताशरण शर्मा की वापसी हुई. तब से वे लगातार दो बार विधायक हैं.

शर्मा परिवार का टिकट खतरे में था, इसलिए छोटे भाई ने चुनी अलग राह
डॉ. शर्मा 2013 से 18 तक विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं. इसके बाद जब 2022 में फिर से भाजपा सरकार बनी तो उन्हें कोई पद नहीं दिया गया. इससे परिवार का भाजपा से मोहभंग हो गया. हालांकि, डॉ. शर्मा की जगह उनके भतीजे व भवानी शंकर शर्मा के बेटे पीयूष शर्मा सक्रिय हो गए. सूत्र बताते हैं कि इसी बीच डॉ. शर्मा का टिकट कटने के कयास लगने लगे. और शर्मा परिवार से बाहर किसी को टिकट देने की चर्चा चल पड़ी. इसी कशमकश में गिरजा शंकर शर्मा ने कांग्रेस की राह चुनी. ताकि परिवार से कोई एक तो चुनाव लड़ सके. कांग्रेस ने भी उनकी बात मानते हुए भाजपा के टिकट घोषित होने से पहले ही उनके नाम का ऐलान कर दिया. सूत्रों को कहना है कि ऐसी स्थिति में भाजपा ने भी स्ट्रेटजी बदल ली और डॉ. शर्मा को टिकट दे दी. दरअसल, भाजपा यह बात अच्छे से जानती है कि सिर्फ नर्मदापुरम ही नहीं बल्कि जिले की दूसरी सीटों पर भी शर्मा परिवार का अच्छा होल्ड है. अब डॉ. शर्मा को टिकट देकर पार्टी ने बाकी सीटों को भी रणनीतिक रूप से साधने की कोशिश की है.

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विचारधारा की लड़ाई
कांग्रेस और बीजेपी के दोनों ही प्रत्याशियों से जब News 18 Hindi ने चर्चा की तो दोनों ही प्रत्याशी ने कहा कि यह लड़ाई पार्टी के विचारधारा की है. पारिवारिक रूप से कोई कटुता नहीं है. चुनाव कोई भी जीते लेकिन इसका असर संबंधों पर नहीं पड़ेगा.

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