भगवान शिव-पार्वती का विवाह स्थल… त्रियुगीनारायण मंदिर में पिंडदान का है विशेष महत्व!

सोनिया मिश्रा/रुद्रप्रयाग.हर साल लाखों श्रद्धालु अपने पितरों के पिंडदान के लिए काशी तो कभी गया की ओर रुख करते हैं. क्योंकि दोनों जगहों की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है. लेकिन देवभूमि उत्तराखंड में कई जगहें ऐसी हैं जहां श्रद्धालु अपने पितरों को तर्पण देने के लिए पहुंचते हैं, उन्हीं में से एक जगह है त्रियुगीनारायण मंदिर. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में देश दुनिया में मशहूर त्रियुगीनारायण मंदिर स्थित है. इस स्थल का इसलिए ख़ास महत्व है.

माना जाता है कि भोलेनाथ ने यहां पर विवाह रचाया था. इसे स्थानीय भाषा में त्रिजुगीनारायण के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर वैसे तो भगवान विष्णु को समर्पित है, लेकिन शिव पार्वती के विवाह स्थल नाम से इसे जाना जाता है. साथ ही श्रद्धालु मंदिर में पिंडदान और काल सर्प दोष के निदान के लिए भी पहुंचते हैं. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी, सरस्वती व अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं. साथ ही गर्भ गृह परिसर के नजदीक सदियों से एक अग्नि कुंड जल रहा है. जिसे ‘अखंड धुनी’ के नाम से भी जाना जाता है. साथ ही मंदिर प्रांगण में चार कुंड सरस्वती कुंड, रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्म कुण्ड स्थित हैं.


जब मुश्किल था बद्रीनाथ-केदारनाथ पहुंचना

मंदिर के पुजारी सुदर्शन गैरोला बताते हैं कि मंदिर में पितृ तर्पण और पिंडदान का पौराणिक महत्व है. जब बद्रीनाथ और केदारनाथ पहुंचना बहुत कठिन था उस दौर में त्रियुगीनारायण पहुंचना श्रद्धालुओं के लिए आसान था. जिस कारण यहां पहुंचकर भक्त पिंडदान करते थे और आज भी वही परंपरा चल रही है.

कैसे पहुंचे?
बाय रोड: त्रियुगीनारायण मंदिर पहुंचने के लिए आपको रुद्रप्रयाग से केदारनाथ धाम वाली सड़क पर जाना होगा. गुप्तकाशी होते हुए सोनप्रयाग से केदारनाथ और त्रियुगीनारायण के लिए दो रास्ते अलग होते हैं.

बाय ट्रेन: रेलमार्ग से आने वाले यात्रियों सबसे निकट रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है. इसके आगे का सफर आपको निजी वाहन से करना होगा.

बाय एयर: चमोली जिले के गौचर में हेलीपैड बना है. देहरादून से आप हेलीकॉप्टर के जरिए गौचर तक आ सकते हैं.

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