भगवान परशुराम ने किया था सहस्त्रबाहु का वध! यह थी युद्ध के पीछे की बड़ी वजह,

दीपक पाण्डेय/खरगोन.त्रेतायुग में एक ऐसे महाबलशाली राजा हुए जिन्होंने तीनों लोको पर विजय प्राप्त करने वाले लंकाधिपति रावण को भी बंदी बना लिया था. सात द्वीपों पर विजय हासिल करने वाले अपराजित माहिष्मति नरेश कार्तविर्य सहस्त्रार्जुन का सामना एक दिन उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली भगवान परशुराम से हुआ, जिन्होंने उनका अंत किया. तो चलिए बताते है परशुराम ने सहस्त्रबाहु का बध क्यों किया और क्या इसके पीछे की वजह थी.

भगवान विष्णु ने लिया अवतार –
श्री राजराजेश्वर कार्तविर्य सहस्त्रार्जुन मंदिर के पुजारी महंत चैतन्यगीरी महाराज ने कहा  कि पौराणिक कथा के अनुशार भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण के हाथो में रहने वाले सुदर्शन चक्र को कभी ना हारने का घमंड होने और युद्ध लड़ने की इच्छा शांत नहीं होने पर सुदर्शन ने भगवान विष्णु से ही युद्ध करने की इच्छा जता दी थी. तब भगवान ने सुदर्शन की इच्छा को पूरी करने के लिए पृथ्वी पर परशुराम के रूप में 18वां अवतार लिया और सुदर्शन चक्र ने सहस्त्रार्जुन का अवतार लिया.

युद्ध की यह थी बड़ी वजह

वें बताते है कि विष्णु पुराण सहित पुस्तकों के अनुसार एक दिन सहस्त्रबाहु अपनी सेना के साथ जमदग्नि ऋषि के आश्रम में विश्राम के लिए रुके. यहां उन्होंने कामधेनु गाय को देखा और साथ ले जाने की इच्छा जताई, परंतु महर्षि जमदग्नि ने देने से इंकार कर दिया, तब क्रोधिक सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा, लेकिन कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई.

परशुराम ने लिए था संकल्प
जब परशुराम अपने आश्रम पहुंचे तब उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बातें बताई. परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए और उसी वक्त सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश करने का संकल्प लिया एवं माहिष्मति पहुंच गए. यहां दोनों के बीच युद्ध हुआ और परशुराम ने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाएं काट दी.

यहां समाहित है दिव्य ज्योति
वें बताते है की उनके गुरु शिव चैतन्य ब्रह्मचारी द्वारा लिखित पुस्तक में बताया गया है की जब सहस्त्रबाहु की 4 भुजाएं बची तो उन्होंने भगवान शिव और भगवान विष्णु से यह आग्रह किया की राज राजेश्वर का मंदिर में मुझे उसमे समाहित कर लिया जाए. तब भगवान ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया और उनकी दिव्य ज्यौत को शिवलिंग में समाहित कर दिया गया. इसे उनकी समाधि स्थल के रूप में भी देखा जा सकता है. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले की पवित्र नगरी महेश्वर में सहस्त्रबाहु को समर्पित यह मंदिर मौजूद है.

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