ब्लड कैंसर से जंग लड़ रही है ये महिला, सात रक्तवीरों ने दिया सहारा

अनूप पासवान/कोरबाः- जिंदगी अनमोल है और उसे सहेजने के लिए रक्त की एक-एक बूंद काफी अनमोल होती है. ब्लड कैंसर से लड़ते हुए जीवन के संघर्ष में डटकर सामना कर रहीं एक महिला की रगों में बहते इसी खून की दरकार है. उनके जीवन की रक्षा के मिशन में कूद पड़े शहर के सात नौजवानों ने भी अपना योगदान देकर मिसाल पेश किया है. उन्होंने कोरबा से साढ़े सात सौ किलोमीटर की यात्रा की और कोलकाता में रक्तदान का महादान अर्पित किया. उनकी इस सहभागिता ने ना केवल परिवार को राहत दी, बल्कि यह अनुकरणीय पहल ने समाज में एक प्रेरक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है, जो दूसरों को भी रक्तदान के लिए प्रोत्साहित करेगा.

ब्लड कैंसर से पीड़ित है महिला
मूलतः रायगढ़ में धरमजयगढ़ के बयसी कॉलोनी में रहने वाले परमा ढाली की धर्मपत्नी श्रीमती सुभद्रा ढाली ब्लड कैंसर जैसी भयावह बीमारी से जूझ रही हैं. उनका उपचार कोलकाता के टाटा मेडिकल सेंटर में चल रहा है. हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने इस बीमारी के चलते उन्हें लगातार रक्त चढ़ाते रहने की जरूरत बताई है. यही जरूरत पूरी करते रहने के लिए श्रीमती ढाली को कई चरण में रक्त चढ़ाया जा रहा है और इसके लिए उनके परिवार को रक्तदाताओं की भी जरूरत पड़ रही है. उनकी इस समस्या की जानकारी कोरबा के कुछ युवाओं को भी मिली. दरअसल ढाली परिवार के एक युवा सदस्य ने कोरबा में रहकर ही अपनी शिक्षा पूरी की और यहां जॉब भी किया. अमृत ढाली नामक युवक ही वो शख्स है और कोलकाता में भर्ती श्रीमती ढाली रिश्ते में उनकी चाची हैं.

अमृत से यह जानकारी मिलने पर उनके दोस्तों ने भी यथासंभव अपने सहयोग की इच्छा जताई और इस तरह एक-एक कर सात दोस्त जुड़ गए. सभी ने एक साथ ट्रेन की टिकट बुक कराई और दो दिन पहले ही टाटा मेडिकल सेंटर कोलकाता पहुंचकर रक्तदान किया. इस बीच इन युवाओं ने कोरबा से करीब 750 किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर रक्तदान का महादान अर्पित किया है. जिन्हें भी इस पहल की जानकारी मिली, उन्होंने इन नौजवानों के हौसले को सलाम किया.

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कॉलेज के दिनों में भी रहे वॉलिंटियर
कोलकाता जाकर सात यूनिट रक्त की सहभागिता देकर सभी युवा कोरबा लौट आए हैं. उन्होंने सोमवार की शाम को ही शहर वापसी की. सेवाभावी युवाओं की इस टीम में शामिल रहे शिवाजी नगर निवासी अटल श्रीवास्तव ने बताया कि हमने कोई अनोखा काम नहीं किया है. समाज का अंग होने के नाते यह हम सभी का दायित्व है कि हम मानव के काम आएं. बस एक बार कोशिश करके जरूर देखें, काफी सरल है और उसके बाद आनंद की जो अनुभूति महसूस होगी, उसका एहसास अमूल्य है. ऐसे वक्त में हमें अपने दोस्त का हाथ तो थामना ही था. उन्होंने बताया कि कॉलेज के दिनों में वे राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़े रहे और उनकी इस टीम में शामिल रहे ज्यादातर दोस्तों ने भी वॉलिंटियर के रूप में कार्य किया है. निश्चित तौर पर जीवन बचाने की उम्मीद पर जोर देते हुए सेवा व सामाजिक जिम्मेदारी का परिचय प्रेरक है.

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