रिपोर्ट – कैलाश कुमार
बोकारो. झारखंड का बोकारो शहर विश्व भर में अपने स्टील प्लांट और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर्यटन के अलावा जगह-जगह ऐतिहासिक धरोहर भी दिख जाते हैं, जिससे इस शहर के ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह होने की जानकारी मिलती है. इसी क्रम में आपको बोकारो के सतनपुर पहाड़ी पर ईंटों से बनी मीनारनुमा इमारतें नजर आएंगी, जिन्हें देखकर पहली नजर में कुछ समझ नहीं आता. इतिहासकारों की मदद लें तो पता चलता है कि ये दो मंजिला इमारत सेमाफोर टावर है. इनकी उम्र 200 साल से अधिक है. टेलीफोन के आविष्कार से पहले इन टावरों का इस्तेमाल संदेशों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता था.
स्थानीय इतिहासकार अमिताभ गुप्ता के मुताबिक बोकारो की पहाड़ी पर बने ये सेमाफोर टावर साल 1813 के दौरान निर्मित हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी इन टावरों का इस्तेमाल संदेश आदान-प्रदान के लिए करती थी. शोधकर्ता अमिताभ गुप्ता ने सेमाफोर टावर से जुड़े रिसर्च की जानकारी अपनी पुस्तक ऑप्टिकल टेलीग्राफ ऑफ इंडियाः द फोरगोटेन सागा में साझा की है. उन्होंने बताया कि बोकारो, हजारीबाग और देश के कुछ अन्य राज्यों में ऐसे 45 सेमाफोर टावर हैं, जिनका प्राचीन समय में उपयोग किया जाता था. 19वीं सदी में टेलीफोन के आविष्कार से पहले ये टावर दूरदराज के संदेश पहुंचाने के काम आते थे. टेलीफोन के आविष्कार के साथ ही इन टावरों का उपयोग बंद हो गया. अब ये सेमाफोर टावर ऐतिहासिक खंडहर बनकर रह गए हैं.
सेमाफोर टावर से कैसे भेजे जाते थे संदेश
सेमाफोर टावर एक बड़े आकार की मीनार हुआ करती थी, जिसमें एक टावर से दूसरे तक अंग्रेज जरूरी कोडेड संदेश पहुंचाया करते थे. हर टावर पर दो-दो खिड़कियों पर दो-दो टेलीस्कोप लगे होते थे, जहां तीन कर्मचारी की जरूरत पड़ती थी. पहला कर्मचारी टेलीस्कोप के जरिए टावर के ऊपर लकड़ी के दो पट्टों पर बने मैसेज देख कर साथी को संदेश बताता था. दूसरा आदमी संदेशों को लिखकर रिकॉर्ड करता था, वहीं तीसरा कर्मचारी लिवर और पुली की सहायता से टावर के ऊपर मौजूद लकड़ी के पट्टों से अलग-अलग साइन बना कर दूसरे टावर तक संदेश भेज देता था. एक टावर से दूसरे तक संदेश पहुंचाने में लगभग 50 का मिनट का समय लगता था.
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FIRST PUBLISHED : January 24, 2024, 12:39 IST