बैंबू आर्ट और गोंड पेंटिंग को बनाया आजीविका का साधन, अब लाखों में कर रहे कमाई

विकाश पाण्डेय/सतना. किसी भी क्षेत्र की हस्तकला उस क्षेत्र की लोकसंस्कृति की झांकी प्रस्तुत करती है. हस्तकला वैसे तो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने वाली कला है, लेकिन पारम्परिक तरीके से चलने वाली यह प्रक्रिया कुछ वर्षों से देखा जाए तो धीमी पड़ चुकी है. धीरे-धीरे इनसे जुड़े लोग इस काम को छोड़ कर दूसरे कामों में रुची ले रहे हैं. इसी बात से दुखी सतना के कैलाश ने लोक कला को जीवित रखने के लिए इसे जानने समझने और इस कला को फायदे का सौदा बनाने के लिए प्रयास शुरू किया, ताकि इस कला को संजोया भी जा सके और इससे जुड़े लोगों को लाभ भी पहुंचाया जा सके.

इसके लिए कैलाश ने ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाना जी देशमुख के साथ इसके काम में शोध कार्य किया और उनके मार्गदर्शन में बैंबू आर्ट और गोंड पेंटिंग में हस्तकला से आकर्षक वस्तुएं तैयार करना शुरू किया.

ग्रामीणों को बनाया आत्मनिर्भर
कैलाश ने बताया कि नाना जी देशमुख का कहना था कि हमें अपने साथ- साथ ग्रामीणों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि ग्रामीणों को भी आत्मनिर्भर बनाया जा सके. इसीलिए कैलाश ने 35 लोगों का एक समूह बनाया, जिसमें उन्होंने, गोंड पेंटिंग, बैंबू आर्ट, अगरिया आर्ट, बैंबू ज्वेलरी सहित कई तरह के आर्ट पर काम शुरू किया और एक मार्केट तैयार किया. जिसके बाद वह आसानी से इन्हे बेंच कर न सिर्फ खुद, बल्कि सभी लोगों को उनके काम के हिसाब से पैसे मिले. आज भारी संख्या में ग्रामीणों ने इसी काम को अपना कर अपनी आजीविका का माध्यम बनाया है.

बैंबू होम से लाखों की कमाई
बैंबू आर्ट अपने आप में अनोखा है, जिसकी आकर्षक कारीगरी किसी का भी मनमोह ले. कैलाश ने सोचा क्यों ना बैंबू होम थीम पर काम किया जाए और कई प्रदर्शनी में उन्होंने बैंबू होम की थीम को प्रदर्शित किया. कैलाश की बैंबू थीम लोगों को खूब पसंद आई और इन्हे बैंबू होम बनाने के ऑर्डर मिलने लगे. अब कैलाश भोपाल, इंदौर, जबलपुर, सतना, सहित प्रदेश भर में बैंबू होम बना कर लाखों की कमाई कर रहे हैं. इसके अलावा कैलाश अब सरकारी योजनाओं से लोगों को लाभान्वित करवा कर के आजीविका मिशन का हिस्सा बना रहे हैं.

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