रूपांशु चौधरी/ हजारीबाग. झारखंड-बिहार में मनाए जाने वालेपर्वों में से एक छठ महापर्व का आगमन जल्द होने वाला है. इसको लेकर बाजार में तैयारी शुरू हो चुकी है. जगह-जगह पर सूप डाली फल आदि के स्टाल लगाए जाने लगे हैं. छठ महापर्व के आगमन के साथी तुरी समाज से जुड़े हुए लोगों की आय में इजाफा हो जाता है. तुरी समाज के लोग बांस के सूप, डालिया और भी बांस के बर्तन यदि बनाते है. यह इनका पारंपरिक पेशा रहा है. इस समाज के लोग कई पीढ़ियों से सूप यदि बनाने में लगे हुए है. सूप बनाने की प्रक्रिया एक प्रकार की हस्तकला है. साथ ही यह काफी जटिल काम भी है.
सूप बनाने के लिए सर्वप्रथम कच्चे बांस को खरीद कर या उसे जंगलों से काट कर लाया जाता है . फिर उसे कच्चे बांस को काटकर छोटे टुकड़ों का आकार दिया जाता है. कांटे हुए बांस को अब चीरा लगाकर बेंत का आकार दिया जाता है. एक बांस से ढेरों पतले पतले बेंत निकलते हैं. बेंत को फिर रात भर पानी में भिगोया जाता है. इससे बेंत काफी मुलायम हो जाता है.
150 रूपए तक होती है सूप की कीमत
रात भर भींगाए हुए बेंत को सुबह पानी से निकाल कर उसमें रौंदा लगाया जाता है ताकि बस का खुरदुरापन साफ हो जाए और उससे हाथों में किसी प्रकार का चोट ना लगे. फिर जाकर सूप की मिराई शुरू होती है. सूप की मिराई होने के बाद उसे सूप का आकार दिया जाता है और उसमें दोनों तरफ से मजबूती देने के लिए बांस की डंडी को लगाया जाता है. सूप बनाने वाले कारीगर संजीव तुरी बताते हैं कि सूप बनाना काफी जटिल प्रक्रिया है.
इसमें पूरा परिवार शामिल होता है. पुरुष जाकर बांस लाते हैं. साथ ही बांस के बेंत बनाया जाता है. वहीं घर के महिलाओं के द्वारा बेंत की मिराई की जाती है. एक तैयार सूप को बेचने के लिए या तो बाजार ले जाना होता है या फिर उसे व्यापारी उसे खरीद कर ले जाते है. खुद से जाकर बाजार में बेचने पर एक सूप की कीमत 150 रूपए तक होती है वहीं व्यापारी को यह सूप 100 रूपए में देना होता है.
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FIRST PUBLISHED : November 15, 2023, 10:02 IST