बिहार: सोना-मोती व नीले गेंहू की हो रही खेती, बंपर पैदावार के साथ तगड़ी कमाई

कुंदन कुमार/गया. सोना-मोती गेहूं प्राचीन काल से प्रचलन में है. इस गेहूं में किसी भी अन्य अनाज के मुकाबले तीन गुना अधिक फोलिक एसिड होता है. गोल-गोल दाने वाला यह अनाज आज लगभग विलुप्त हो चुका है. इसके फायदे जानकर अपने स्वास्थ्य को लेकर गंभीर व सजग अब कई किसान इसकी खेती करने लगे हैं. बिहार के गया जिले में पिछले 3 साल से सोना-मोती गेहूं की खेती की जा रही है. गया के रहने वाले प्रगतिशील किसान आशीष कुमार सिंह इस बार तीन बीघा में सोना-मोती गेहूं जबकि लगभग दो बीघा में नीली गेहूं की खेती किए हुए हैं.

आशीष कुमार सिंह पिछले साल दो बीघा में सोना-मोती गेहूं का खेती किए थे. जिसमें लगभग 16 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ था. आशीष बीज का संरक्षण करते हैं और किसानों को बीज देकर इसकी खेती करवाते हैं. किसानों को लगभग 80-100 रुपये प्रति किलो इसका बीज देते हैं. सोना-मोती गेहूं के अलावे इन्होंने नीले गेहूं की खेती भी कर रखी है. इस बार दो बीघा में नीला गेहूं की खेती की जा रही है. गौरतलब हो कि आशीष कुमार सिंह विभिन्न तरह के खेती के लिए जाने जाते हैं जिसमें काला आलू, काला गेहूं, काला धान, नीला गेहूं, काली हल्दी आदि.

जीरो टिलेज के माध्यम से खेतों में गेहूं करते हैं बुवाई
आशीष ने जीरो टिलेज के माध्यम से खेतों में गेहूं की बुवाई करवाई हैं. इस विधि से खेती करने में जुताई करने की जरूरत नहीं पड़ती. इस तकनीक के माध्यम से फसल लगाने के कई फायदे हो जाते हैं. समय के बचत के साथ-साथ खेतों की जुताई के पैसे की बचत हो जाती है. बता दें कि सोना-मोती पंजाब में उगाई जाने वाली गेहूं की पुरानी किस्म है, जिसे बिहार के लोगों के द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है. गया के अलावे बेगूसराय, अरवल, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी और अन्य कई जिलों में इसकी खेती की जा रही है.

खनिज-प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती अधिक
गया कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि सोना-मोती गेहूं में किसी अन्य अनाज के मुकाबले तीन गुना अधिक फोलिक एसिड होता है. यही नहीं इसमें खनिज और प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है. फोलिक एसिड गर्भवती महिलाओं के लिए काफी लाभदायक है. साथ ही बालों को भी मजबूत बनाता है.

इस गेहूं की पैदावार प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल होती है, जबकि अन्य किस्म की पैदावार गेहूं प्रति एकड़ 12 से 16 क्विटल है. इस किस्म में ग्लूटेन और ग्लाइसीमिक तत्व कम होने के कारण, डायबिटीज पीड़ितों में इसकी बहुत मांग है.

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