बिहार के गया के आशीष एक प्रगतिशील किसान है जो ब्लैक पोटैटो, रेड राइस, ब्लैक राइस, ब्लैक गेहूं की सफल खेती कर चुके हैं. अब वह काली हल्दी की खेती कर रहे हैं. काली हल्दी मजबूत एंटीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जडी़ बूटी के रूप में उपयोग की जाती हैं. इसका प्रयोग घाव, मोच, त्वचा, पाचन तथा लीवर की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है.
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बिहार के गया के किसान इन दिनों खेती में कई सफल प्रयोग कर रहे हैं. इससे कम समय में बेहतर मुनाफा रहा है. बिहार के गया जिले में एक ऐसे ही किसान हैं जो खेती में अलग-अलग प्रयोग कर सफल खेती कर रहें है.
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गया के टेकारी प्रखंड क्षेत्र के गुलरियाचक गांव के रहने वाले आशीष कुमार सिंह एक प्रगतिशील किसान है, जो ब्लैक पोटैटो, रेड राइस, ब्लैक राइस, ब्लैक गेहूं की सफल खेती कर चूके हैं.अब आशीष ब्लैक हल्दी की खेती पिछले तीन साल से कर रहे हैं और विलुप्त हो रही काली हल्दी की खेती के फायदे और महत्व को किसानों को बता रहे हैं.
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आशीष जिले के पहले ऐसे किसान हैं, जो काली हल्दी की खेती शुरू की है. पिछले वर्ष इन्होंने एक कट्ठा में काली हल्दी की खेती की थी. इससे करीब एक क्विंटल तक हल्दी का उत्पादन किया था. साथ ही वह अन्य किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं.
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लोकल 18 से बात करते हुए आशीष कुमार सिंह बताते हैं कि कृषि से जुड़ा एक लेख पढ़ने के दौरान पता चला कि 2016 में सरकार के द्वारा काली हल्दी को लुप्तप्राय प्रजाति की फसल में रखा गया है. इसके बाद उन्होंने काली हल्दी की खेती को बचाने के लिए साल 2021 में मध्य प्रदेश से हल्दी मंगवाकर एक कट्ठा में खेती शुरू किया.
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साथ ही अन्य किसानों को भी इसकी खेती करने के लिए जागरूक किया.इसकी खेती पीली हल्दी की खेती के जैसा ही किया जाता है. मार्केट में 300 रुपये किलो इसकी बिक्री होती है. मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय के लोग शुभ कार्यों में काली हल्दी का उपयोग करते हैं.
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यह काली हल्दी औषधीय गुण से भरपूर है. इसका उपयोगदवा बनाने के रूप में बड़े स्तर पर किया जाता है. काली हल्दी पीली हल्दी से कई गुणा गुणकारी है. काली हल्दी मजबूत एंटीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जडी़ बूटी के रूप में उपयोग की जाती हैं.इसका प्रयोग घाव, मोच, त्वचा, पाचन तथा लीवर की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है.
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