बिहार में है आदिवासियों का एकमात्र म्यूजियम, संरक्षित कर रखे गए हैं उनके हथियार

आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण: क्या आपको पता है कि बिहार के पश्चिम चम्पारण जिला में एक ऐसा भी संग्रहालय है, जहां आदिवासी थारू जनजाति की पारंपरिक वस्तुओं को संरक्षित किया गया है. खास बात यह है कि ये संग्रहालय बिहार का एकमात्र संग्रहालय है जहां आदिवासियों द्वारा प्राचीन काल में उपयोग किए जाने वाले शिकारी हथियार तथा रोजमर्रा के जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुओं को संभाल कर रखा गया है.

हालांकि जहां तक बात रख-रखाव की है तो फिलहाल इन्हें हरनाटांड़ स्थित महादेवा गांव में बने एक छोटे से भवन में हीं संग्रहित किया गया है.आज हम आपको इस खबर के माध्यम से बिहार के इस इकलौते संग्रहालय की वो जानकारी देने जा रहें है, जिससे आप अब तक अनजान थे.

2012 में हुआ भवन का निर्माण

हरनाटांड़ के महादेवा में स्थित थारू संस्कृति संरक्षण संग्रहालय के सचिव शुभम नीरज की माने तो पश्चिम चम्पारण में स्थित यह संग्रहालय थारू जनजाति के इतिहास, कला एवं उनकी संस्कृति को समेटे हुए है. हालांकि सभी वस्तुओं का संरक्षण सैकड़ों वर्ष पूर्व से चलता आ रहा है. लेकिन मौजूदा भवन का निर्माण 2012 में किया गया.

वर्तमान में यहां 100 से अधिक वस्तुओं का संरक्षण किया गया है. जिसका उपयोग जंगलों में रहने वाले थारू समाज के लोग सदियों पहले किया करते थे. शुभम ने बताया कि वो चाहे मछली पकड़ने की छन्नी हो या फिर कपड़े रखने वाला झापा, आज इन बेशकीमती वस्तुओं का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है. दरअसल, आधुनिकरण होने की वजह से थारू समुदाय के लोग भी पारंपरिक चीजों का उपयोग बड़े पैमाने पर नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में इनके निर्माण एवं कार्य की प्रक्रिया धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है.

हर यंत्र का था अपना एक विशेष महत्व

बता दें कि संग्रहालय में मौजूद हर एक वस्तु का निर्माण हाथों से हीं किया गया है. इसे बनाने के लिए जंगल में उपजने वाले बांस, पत्ते एवं विशेष किस्म की घांस का प्रयोग किया गया है. शुभम ने बताया की संग्रहालय में मौजूद वस्तुओं में सबसे अधिक शिकार के लिए बनाए गए औजार हैं. इनमें बांस एवं मूज की बनी डेली, गेदरा, बेवा, जतरी, कोइन, खुटकी, गुरता, झीमर एवं छन्नी खास है.

अगर बात की जाए इन यंत्रों के उपयोग की तो डेली का उपयोग पकड़ी गई मछलियों को रखने के लिए, गेदारा केकड़ों को पकड़ने के लिए, बेवा का उपयोग कम मात्रा में मछलियों को पकड़ने के लिए, जतरी का उपयोग चूहों को पकड़ने के लिए, कोइन मछलियों एवं केकड़ों को पकड़ने के लिए, खुटकी का उपयोग चिड़ियों को पकड़ने के लिए तथा झिमर एवं छन्नी का उपयोग बड़ी मात्रा में मछलियों को पकड़ने के लिए किया जाता था.

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