कुंदन कुमार/गया. गया के बोधगया में पर्यटन सीजन शुरू हो चुका है और विदेशी पर्यटकों का आगमन भी तेज हो गया है. कई देश के बौद्ध श्रद्धालु बोधगया पहुंच चुके हैं. विभिन्न पूजा तथा दलाई लामा के टीचिंग में यह सभी शामिल होंगे. पर्यटकों के आगमन के कारण बाजार भी पूरी तरह सज चुकी है. बाजार में खाने पीने से लेकर हर तरह की चीज उपलब्ध हैं. अधिकांश पर्यटक और बौद्ध श्रद्धालु होटल में न खाकर खुद से खाना तैयार करते हैं.
विदेशी पर्यटको को सबसे ज्यादा पसंदीदा सब्जी चाइनीज साग और ब्रोकली होती है. बोधगया के बाजार में यह सब्जी आसानी से इन्हें उपलब्ध हो जाती है. बोधगया प्रखंड क्षेत्र के दर्जनो किसान हैं जो चाइनीज साग और ब्रोकली की खेती से जुड़े हुए हैं.
ठंड के मौसम में होती है चाइनीज पेचे और ब्रोकली की खेती
बोधगया के बकरौर, रतीबिगहा और मोचारिम गांव के किसान सालों से ठंड के मौसम में चाइनीज पेचे और ब्रोकली की खेती करते आ रहें हैं और इसे अच्छे कीमत पर बाजार में बेचते हैं. ज्यादातर इसकी खेती ठंड के दिनों में ही करते हैं, क्योंकि इसी मौसम में विदेशी पर्यटक बोधगया पहुंचते हैं. तकरीबन 3 महीने तक इस सब्जी की डिमांड होती है. इससे किसानों को अच्छी आय हो जाती है. इन दिनों बोधगया के बाजार में ब्रोकली की कीमत 30-40 रुपए प्रति पीस जबकि चाइनीज पेचे की कीमत 60 रुपया किलो है.
सीजन में लगभग 1 लाख रुपए की होती है आय
बकरौर, रतीबिगहा और मोचारिम गांव के अधिकांश किसान एक या दो कट्ठे में ही इसकी खेती करते हैं. दो से तीन महीने के सीजन में लगभग एक लाख रुपए की आय कर लेते हैं. बता दे कि विदेशी पर्यटक इन सब्जियों का इस्तेमाल सालाद और सूप बनाने के लिए करते हैं. माना जाता है कि ठंड के दिनों में यह सब्जी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है. इससे शरीर गर्म रहता है.
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अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए विदेशी पर्यटक अपने ही देश का भोजन करना पसंद करते हैं. जिसमें यह चाइनीज सब्जी भी है और यह उनका फेवरेट खाना में से एक है.
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मिलती है अच्छी कीमत
गांव के किसान बताते हैं कि शुरुआत में यह सब्जी अच्छी कीमत दे जाती है. फिलहाल 50 रुपये साग और 30 रुपये ब्रोकली की बिक्री हो रही है. अन्य सब्जियों की तुलना में इसमें अच्छी बचत हो जाती है. खासकर इस सब्जी को विदेशी लोग पसंद करते है. अब बड़े-बड़े होटलों में भी इसकी डिमांड बढ़ गई है. यह सब्जी साल मे सिर्फ ठंड के मौसम में होता है और आम सब्जियों की खेती की तरह ही इसकी खेती की जाती है.
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FIRST PUBLISHED : December 1, 2023, 13:46 IST