सच्चिदानंद/पटना : राजधानी पटना के बीचों बीच भीड़ से भाड़ से दूर एक ऐसा गांव बसा हुआ है, जहां के लोगों की रगों में वृन्दावन की खुशबू आती है. वृन्दावन से कुछ ग्वाले पटना पहुंचें और नंद गांव को बसाया. यहां के लोग श्रीकृष्ण को कोई अवतार नहीं बल्कि घर का बच्चा मानते हैं.
भगवान कृष्ण के जन्मदिन के मौके पर यहां के लोग उपवास नहीं बल्कि उत्सव मनाते हैं. अलग अलग पकवानों के साथ जन्मदिन मनाया जाता है. यहां कृष्ण की मूर्ति नहीं बल्कि मुकुट की पूजा होती है. इतना ही नहीं इस गांव को दो जगहों से विस्तापित किया गया है. इस गांव के बुजुर्ग सकलदेव प्रसाद बताते हैं कि हमारे पूर्वज वृंदावन से यहां आए हैं और पटना के हवाई अड्डा के पास बस गए. उसके बाद अब हम विस्थापित होते हुए पुलिस मुख्यालय के पीछे बसे हुए हैं.
मूर्ति नहीं मुकुट की होती है पूजा
पटना के इस अनोखे गांव का इतिहास वृंदावन से जुड़ा हुआ है. वर्षों पहले वृंदावन से कुछ ग्वाले पटना आएं और एयरपोर्ट बनने से पहले वहां की जमीन पर रहने लगे. 1912 में जब बिहार, बंगाल से अलग हुआ तो अंग्रेजों ने पटना को राजधानी बनाने के लिए इन्हें बेली रोड के पास बसा दिया. जब गोल्फ क्लब बनने लगा तो इस गांव का विस्थापन पुलिस मुख्यालय के पीछे हो गया. तब से लेकर आज तक लोग यहीं रह रहे हैं. इन वर्षो में कई पीढ़ियों ने यहां जन्म लिया. नंद गांव के बुजुर्ग सकलदेव प्रसाद बताते हैं कि हमारे पूर्वज वृंदावन से आएं हैं और हम कृष्णौथ वंश से ताल्लुक रखते हैं.
कृष्ण को घर का बच्चा मानते हैं यहां के लोग
गांव के लोग बताते हैं कि हमारे लिए कृष्ण कोई भगवान का अवतार नहीं बल्कि घर का बच्चा है. इसीलिए हम उपवास नहीं बल्कि जन्मोत्सव मानते हैं. अलग अलग तरह का व्यंजन बनाया जाता है और भोग लगाया जाया है. इसके साथ ही यहां कृष्ण की मूर्ति नहीं बल्कि मुकुट पूजा की परंपरा है. गांव के बुजुर्ग सकलदेव प्रसाद बताते हैं कि मुकुट की पूजा की परंपरा देवचंद्र महाराज ने शुरू की थी.
पाकिस्तान के अमरकोट में जन्में देवचंद्र महाराज बचपन में ही वो भुज में संत हरिदास जी के पास चले गए जो बालमुकुंद जी और बांके बिहारी के भक्त थे. उनकी भक्ति देखकर हरिदास जी ने उन्हें बालमुकंद जी और बांके बिहारी की मूर्ति देने का वचन दिया. मूर्ति देने के एक रात पहले ही मूर्तियां मंदिर से गायब हो गई.
यह भी पढ़ें : इस रेस्टोरेंट में पहले हथकड़ी लगाएंगे, फिर खाना देंगे…वेटर सारे कैदी की ड्रेस वाले…नाम है ‘जेल कैफे’
दुखी संत हरिदास जी को स्पप्न में बालमुकुंद दर्शन दिए और बोले कि तुम देवचंद्र महाराज के स्वरूप को नहीं जानते वो परम् धाम के श्याम जी के अवतार हैं. मैं उनकी सेवा कैसे ले सकता हूं. तुम उनको मेरा मुकुट और वस्त्र दे दो. इसी के बाद मुकुट की पूजा की परंपरा शुरू हो गई. इस गांव के लोग देवचंद्र महाराज को मानते हैं. आपको बता दें कि नंद गांव के लोग पंचम वेद(तारतम्य सागर) को ही अपना वेद मानते हैं. वो हर दिन इसका पाठ करते हैं और इसमें लिखी बातों का पालन करते हैं.
.
Tags: Bihar News, Local18, PATNA NEWS, Religion 18
FIRST PUBLISHED : September 06, 2023, 19:21 IST