नीतीश कुमार ने जातिगत गणना कराने के साथ आंकडे जारी भी कर दिये. बिहार के जातिगत गणना के आंकडे मोटे तौर पर इशारा करते हैं कि देश में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) की आबादी लगभग 55 से 60 फीसदी के बीच हो सकती है. ऐसे में जातिगत गणना कराकर अपनी सियासत देश में चमकाने वाले नीतीश कुनार को अब राष्ट्रीय नेता बनने का बेहतरीन मौका मिल गया है.
यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने 85 बनाम 15 का मुद्दा दिया था. उनका मकसद आबादी के हिसाब से आरक्षण देने का था. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में आएगी, तो वो भी जाति गणना कराएगी. यानी 2024 के चुनाव में विपक्षी दलों ने इसे मु्द्दा बनाने का संकेत दे दिया है. साफ है कि बिहार से निकला जातिगत गणना का मुद्दा निश्चित तौर पर दूर तलक जाएगी.
Bihar Caste Survey: बिहार सरकार ने जारी की जातिगत गणना की रिपोर्ट, पिछड़ा वर्ग 27.1 प्रतिशत
सर्वे के मुताबिक राज्य में 36.01 प्रतिशत के साथ अत्यंत पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा वोट बैंक है. इसके बाद ओबीसी 27.12 प्रतिशत हैं, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा 14.26 प्रतिशत के साथ यादवों के पास हैं. सर्वे के नतीजों से नीतीश कुमार को अत्यंत पिछड़ा वर्ग(EBC), गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग(OBC) और महादलितों के बीच खुद को मजबूती से स्थापित करने में मदद मिलने की संभावना है. जाहिर तौर पर चुनाव के मद्देनजर इन वर्गों को कोई भी दल नजरअंदाज नहीं करना चाहेगा.
क्या कहते हैं आंकड़े?
लोकसभा चुनाव-1999 (OBC वोट %)
-बीजेपी- 23
-कांग्रेस- 24
लोकसभा चुनाव-2004 (OBC वोट %)
-बीजेपी- 23
-कांग्रेस- 24
लोकसभा चुनाव-2009 (OBC वोट %)
-बीजेपी- 22
– कांग्रेस- 24
लोकसभा चुनाव-2014 (OBC वोट %)
-बीजेपी- 34
-कांग्रेस- 15
लोकसभा चुनाव-2019 (OBC वोट %)
-बीजेपी- 44
-कांग्रेस- 15
बिहार के जातीय गणना के नतीजे को लेकर NDTV ने axis my india के फाउंडर प्रदीप गुप्ता, C वोटर के फाउंडर यशवंत देशमुख और वरिष्ठ पत्राकर जयंतो घोषाल से बात की. ये तीनों चुनावी सर्वे कराते हैं और जमीन पर जाकर लोगों का मिजाज जानने वाले लोग हैं.
क्या मंडल बनाम कमंडल की राजनीति देश में लौट रही है? इस सवाल के जवाब में axis my india के प्रदीप गुप्ता ने कहा, “भारत में आज तक इतिहास गवाह है कि जिसने भी आरक्षण जैसे सेंसेटिव सब्जेक्ट को छुआ है, वो चुनाव हारा है. किसी पार्टी ने चुनाव में जिस मंशा के साथ जातिगत आरक्षण की बात की थी. उसकी हार हुई है. मिसाल के तौर पर 1990 में वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया. उसके बाद आप देखिए पहले तो वीपी सिंह की सरकार गिर गई. फिर 1991 में चुनाव हुए और कांग्रेस ने जीत हासिल की. वीपी सिंह फिर कभी राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में नहीं आए.”
प्रदीप गुप्ता बताते हैं, “इसी साल हुए कर्नाटक के चुनाव को भी देख लीजिए. बीजेपी राज्य सरकार ने वोक्कालिगा और लिंगायत समाज को 2-2 फीसदी आरक्षण देने की बात की. यहां पर भी बीजेपी हार गई. ये इतिहास बताता है कि जब-जब किसी भी पार्टी या किसी भी पार्टी के नेता ने आरक्षण जैसे सेंसेटिव सब्जेक्ट को टच किया है, उसकी हार हुई है.”
नीतीश को उम्मीद है कि बिहार सर्वेक्षण राष्ट्रव्यापी जाति आधारित गणना के लिए प्रेरणा प्रदान करेगा
हमेशा से ओबीसी जनगणना की विरोधी रही कांग्रेस भी अब इसकी मांग कर रही है और बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रही है. नीतीश कुमार ने तो काम करके दिखा दिया. तो क्या नीतीश कुमार अब INDIA अलायंस के सबसे बडे और सबसे स्वीकार्य नेता बन जाएंगे? इसके जवाब में प्रदीप गुप्ता कहते हैं, “कद का जहां तक सवाल है तो इसमें दो पॉइंट हैं. पहला- INDIA गठबंधन के अंदर या विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के अंदर… इस पॉइंट पर हां नीतीश कुमार का कद तो बढ़ेगा जरूर, लेकिन कांग्रेस से बड़ा तो उनका कद कभी नहीं हो सकता. जब भी आप INDIA गठबंधन की बात करेंगे, तो आप पाएंगे कि सिरमौर की भूमिका में तो हमेशा कांग्रेस ही रहेगी.”
अब सवाल ये कि जाति गणना के नाम पर बीजेपी ने अबतक चुप्पी क्यों साधी हुई है. क्या बीजेपी के लिए ओबीसी के आंकडे बड़ी परेशानी बनकर आये हैं? क्या बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अपने पत्ते खोलेगा? क्योंकि एनडीए में शामिल कई पार्टियां भी जातिगत गणना की मांग कर रही हैं.
इसके जवाब में प्रदीप गुप्ता कहते हैं, “पिछले लोकसभा में 67 फीसदी वोट पड़े थे. इस 67 फीसदी का 80 फीसदी ग्रामीण और गरीब तबके से जुड़ा है. 70 फीसदी तो ग्रामीण आबादी है भारत में. यानी 80 फीसदी लोगों का रोजमर्रा का जीवन सरकार के ऊपर निर्भर है. ऐसे लोग जब सरकार को चुनते हैं, तो बहुत सोच विचार कर और समझदारी के साथ चुनते हैं. उसमें जाति-धर्म का कोई लेना-देना नहीं होता. धर्म का तो बिल्कुल ही लेना-देना नहीं है. बेशक हम मीडिया या कहीं पर भी कुछ भी बात कर लें. हां जाति का इतना जरूर फर्क पड़ता है कि अगर कोई हमारी जाति के बीच का आदमी चुनाव में खड़ा हुआ है या सामने है… हम उसकी तरफ मुड़ जाते हैं. क्योंकि हमें लगता है कि हमारी जाति का व्यक्ति या उम्मीदवार हमारी जरूरतों, आचार-विचार, संस्कृति को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाता है.”
उन्होंने कहा, “जनता जब किसी उम्मीदवार को चुनती है, तो ये बड़े उम्मीद के साथ चुनती है और उसे ये पता होता है कि ये हमे इस सरकार से क्या-क्या मिलने वाला है. ये सब जब नहीं मिलता है तो जनता उसे बदल देती है.”
वहीं, ओबीसी वोट पर वरिष्ठ पत्रकार जयंतो घोषाल ने कहा, “चुनाव में अभी कुछ वक्त बचा है. इसलिए इस समय INDIA गठबंधन की ये प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए. क्योंकि जो को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनी है, उसमें ममता बनर्जी का कहना है कि सीट शेयरिंग कमेटी भी होनी चाहिए. वास्तव में अभी प्राथमिकता इस बात को लेकर होनी चाहिए कि कितने राज्यों में 1:1 का रेशियो बन पा रहा है. आप इसे अगर ध्यान नहीं देंगे, तो गठबंधन बनाने से कोई मतलब नहीं है.”
कुल मिलाकर देखा जाए तो ओबीसी को लेकर INDIA अलायंस में भी सबकुछ ठीक ही रहेगा, ये जरूरी नहीं है.