बिहार के चौकीदार के लिए कोरोना बना वरदान…लॉकडाउन में लगा दी दो फैक्ट्रियां

सत्यम कुमार/भागलपुर. कोरोना महामारी किसी के लिए अभिशाप बन गया, तो किसी के लिए वरदान. इस आपदा ने लोगों को विचलित जरूर किया, लेकिन जिसने भी इसे अवसर माना, उसकी जिंदगी पहले से कई गुना ज्यादा खुशहाल भी हो गई. ऐसा ही कुछ बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया के तेलघि गांव के रहने वाले एक युवक के साथ हुआ.

तेलघि निवासी नंदीकेश कुमार कोरोना से पहले मामूली तनख्वाह पर एक फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे. अब खुद दो-दो फैक्ट्री के मालिक बन गए हैं. आपको यह जानकर हैरानी जरूर हो सकती है, पर घटना है सोलह आना सच. खुद की फैक्ट्री लगाने के साथ-साथ वे दूसरों को भी उद्यमी बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. वे कभी 10 से 15 हजार रुपए की नौकरी करते थे और आज उनका एक करोड़ से ज्यादा का सालाना टर्नओवर है. कमाई भी लाखों में है.

12वीं के बाद मुंबई में बन गए गार्ड
नंदीकेश बताते हैं कि घर की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होने की वजह से 12वीं पास करने के बाद से ही नौकरी की तलाश में भटकने लगे थे. इसी क्रम में वे मुंबई पहुंच गए, जहां उन्हें गार्ड की नौकरी मिल गई. तनख्वाह इतनी थी कि इससे वे सिर्फ अपना पेट पाल रहे है. वे बताते हैं कि उन दिनों मन में कसक भी थी कि अगर बिहार में फैक्ट्रियां होती, तो उन्हें भी दूसरों की तरह नहीं भटकना पड़ता. घर की याद सताती थी सो अलग. जब भी मैं यह गाना सुना करता था ‘चार पैसे कमाने में आया शहर गांव मेरा मुझे याद आता रहा’ तब- तब रोना जाता था.

लॉकडाउन लगा तो लौट आए घर
वे बताते हैं कि कोरोना में लगे लॉकडाउन में मुंबई में खाने तक पर आफत आ गई थी. श्रमिक ट्रेन से वापस घर आ गए. नंदीकेश बताते हैं कीजब मैं घर पहुंचा और कोरोना का पहला वेव खत्म हुआ, तो मुझे लगा कि अब पुनः मुंबई लौटना चाहिए, लेकिन घर की याद लौटने से भी मना करवा देती थी. ऐसा लगता था कि जिस फैक्ट्री में मैं वहां गार्ड की नौकरी करता हूं, अगर वही फैक्ट्री यहां पर लग जाए तो कितनी अच्छी होगी.

फिर सरकार की योजना का लाभ लिया और पहले कॉपी बनाने की फैक्ट्री लगाया. लेकिन, फिर से लॉकडाउन लग गया. फैक्ट्री का शटर डाउन करना पड़ा. फिर भी हार नहीं मानी. कोरोना खत्म होने के बाद जब मैं कॉपी देने के लिए स्कूल घूमा करता था, तो लोग बैग्स बनाने के भी ऑर्डर देने लगे. इसके बाद बैग बनाना भी शुरू कर दिया. अब वे 40 से अधिक लोगों को छोटे-छोटे रोजगार से जोड़ चुके हैं.

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