बिहार के गया में बन रहा टेक्सटाइल पार्क, बुनकरों को मिलेगा रोजगार

कुंदन कुमार/गया:- बिहार के गया जिला में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के तर्ज पर इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क बनाने का काम तेजी से चल रहा है. गया के मानपुर प्रखंड के शादीपुर गांव में 23 एकड़ जमीन अधिग्रहित कर उसमें बाउंड्री बनाने काम आगे बढ़ रहा है. शादीपुर गांव में टेक्सटाइल पार्क बनने से जहां फल्गु नदी प्रदूषण मुक्त होगा, वहीं कई स्थानीय लोगों को इससे रोजगार मिलेगा. यहां पर कोट पेंट के निर्माण का काम चलेगा. इसके अलावा नए प्रकार के अत्याधुनिक कपड़े भी तैयार होंगे. टेक्सटाइल पार्क बनाने के पीछे सरकार का मकसद है कि मानपुर के पटवा टोली में चल रहे कपड़ा उद्योग को बढ़ावा मिले और पावर लूम, हैंडलूम सहित टेक्सटाइल के पूरे उद्योग को एक ही स्थान पर स्थापित किया जाए.

मैनचेस्टर ऑफ बिहार के नाम से प्रसिद्ध है पटवा टोली
फिलहाल मैनचेस्टर ऑफ बिहार के नाम से प्रसिद्ध पटवा टोली में लगभग 2000 हैंडलूम और 12000 पावर लूम के जरिए कपड़ा बुनाई का काम किया जा रहा है. पटवा टोली में इस उघोग से 35 से 40 हजार श्रमिकों को रोजगार मिल चुका है. शादीपुर गांव में 23 एकड़ में बन रहे टेक्सटाइल पार्क में धागा बुनाई से लेकर कपड़े बनाने का काम बड़े पैमाने पर आधुनिक औद्योगिक बुनियादी ढांचा तैयार करके काम किया जाएगा. इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल पार्क की जमीन उद्योग विभाग को सौंप दी गई है और अब विभाग के द्वारा ही सारा काम किया जा रहा है.

बेहतर जगह मिले, जहां कई लोग आकर काम करे
इस टेक्सटाइल पार्क के बारे में जानकारी देते हुए गया के जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन एसएम ने कहा कि टेक्सटाइल पार्क बनाने के पीछे उद्देश्य है कि पटवा टोली के बुनकरों को एक बेहतर जगह मिले, जहां कई लोग आकर काम करें. हमारी कोशिश है कि यहां अत्याधुनिक ऑटोमेटिक पावर लूम और हैंडलूम के मशीन स्थापित हो सके. इसके अलावा कई लोगों को उद्योग विभाग के माध्यम से लोन देने के लिए सूची बनाई गई है. जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, वैसे ही लोगों को लोन देकर यहां यूनिट स्थापित किया जाएगा.

पटवा टोली के कपड़ों की पूरे भारत में होती है सप्लाई
गया के मानपुर स्थित पटवा टोली में बने कपड़े पूरे भारत में जाते हैं. यहां निर्मित कपड़ों की खपत लगभग 60% पश्चिम बंगाल, 15% असम और शेष झारखंड, उड़ीसा और बिहार में होती है. जानकारी के अनुसार यहां के उद्योग से 35000 लोग जुड़े हुए हैं और साल में करीब 400 करोड़ का कारोबार होता है. मगर अब धीरे-धीरे इस उद्योग से जुड़े लोग कम हो रहे हैं. वहीं सालाना कारोबार में भी गिरावट देखी जा रही है. बैंकों से लोन नहीं मिलने के कारण भी बुनकरों को इस उद्योग को बढ़ावा नहीं मिल रहा है. अब यहां टेक्सटाइल पार्क बनने के बाद बुनकरों के दिन अच्छे होंगे और हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा.

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