बिहार के इस मंदिर में फूल और बेलपत्र से बनाई जाती है मां दुर्गा की आकृति, जानें कब से शुरू हुआ सिलसिला

नीरज कुमार, बेगूसराय: बिहार में एक ऐसा मां का मंदिर है जहां नवरात्रि में प्रतिदिन फूल और बेलपत्र से मां जयमंगला की आकृति बनाई जाती है. पूजा-पाठ करने वाले स्थानीय लोगों का दावा है कि यह प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध है, क्योंकि पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं फूल और बेलपत्र से मां को स्वरूप दिया जाता है. वहीं नवरात्र में 9 दिनों तक मां जयमंगला जिसे दुर्गा का एक स्वरूप मानते हैं, इस तरह ही आकृति बनाई जाती है. यह प्रतिमा पूरी तरह से प्राकृतिक है. इस मंदिर में पूजा-अर्चना गांव के ही 9 परिवार के वंशज के द्वारा किया जाता है.

यह पूजा-पाठ कहीं ओर नहीं बल्कि शक्तिपीठ जयमंगलागढ़ से 13 किमी दूर चेरिया बरियारपुर प्रखंड के विक्रमपुर गांव होती है. स्थानीय लोग मां जयमंगला की नवरात्र में पूजा करने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं. बताया जाता है कि सबसे पहले मां की प्रतिमा बनाने के लिए बेलपत्र से आकृति बनाई जाती है फिर विभिन्न तरह के फूलों से मां को स्वरूप दिया जाता है.

कब और कैसे पूजा हुई प्रारंभ
स्थानीय कई जानकारों ने बताया लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में बलि प्रदान को लेकर पहसारा और बिक्रमपुर गांव में ठन गई थी. दोनों गांव के लोग एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे. तभी नवरात्र के समय बिक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला आई थी और उन्होंने कहा था कि नवरात्रि के पहले पूजा से लेकर नवमी पूजा के बलि प्रदान तक बिक्रमपुर गांव में रहेगी. इसके पश्चात गढ़ लौट जाऊंगी.

देवी ने स्वप्न में ही पूजा की विधि बताया. बताया जाता है देवी ने फूल और बेलपत्र को तोड़कर आकृति बनाकर पूजा करने तथा धूप एवं गुगुल से पूजा की विस्तार से विधि बताई थी. तभी से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई . आज भी उनके वंशज पूजा करते आ रहे हैं. फलतः इस गांव की आस्था माता जयमंगला पर बनी हुई है और आज भी इस गांव के लोग कोई शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले जयमंगलागढ़ जाकर मंदिर में माथा टेकते हैं.

4 से चार घंटे में तैयार होती है मां का स्वरूप
मां को स्वरूप देने वाले पंकज ने ने बताया किमां दुर्गा की आकृति बनाने के लिए फूल देश के कई राज्यों से भक्त अपनी हैसियत के अनुसार लाते हैं. इसे स्वरूप देने वाले पुजारी पंकज के अनुसार 6 बजे से स्वरूप देना शुरु करते हैं और 10 बज जाता है.

गांव के रहने वाले और पूजा करने वाले परिवार के सदस्य रामशंकर सिंह, राधेश्याम सिंह आदि ने बताया कि संध्या के समय मां की आकृति पूर्ण होने के साथ हीं मंदिर में पूरी रात धूप-गुगुल एवं अगरबत्ती जलाई जाती है. उससे निकलने वाले धुएं जहां तक फैलती है, वहां तक सुख- समृद्धि बरसती है. इसलिए मंदिर में धुएं की व्यवस्था की जाती है.

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