बिहार की 40 नहीं, मात्र 5 सीटों पर फोकस करें राहुल-तेजस्वी, दिलचस्प हो जाएगा मुकाबला!

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 370 सीटें जीतने का टारगेट लेकर चल रही है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के पास अभी तक कोई पुख्ता प्लान नहीं नजर आ रहा है. आज इसी संदर्भ में बिहार की बात करते हैं. बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन को राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत हासिल हुई थी. राज्य की प्रमुख पार्टी राजद का खाता नहीं खुल पाया था. जो एक सीट थी वह कांग्रेस को मिली थी.

लेकिन, पुराने नतीजे के आधार पर स्पष्ट तौर पर यह कह देना ठीक नहीं होगा कि इस बार भी नतीजे कुछ ऐसे ही रहेंगे. निश्चिततौर पर राम मंदिर निर्माण, राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ एक फिर गठबंधन और पीएम मोदी के करिश्माई नेतृत्व की वजह से राज्य में एनडीए को बढ़त हासिल है, लेकिन यह कह देना कि इस बार भी 2019 जैसा रिजल्ट आएगा, थोड़ी जल्दबाजी होगी. दूसरी तरफ, बीते 2019 के चुनाव में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की वजह देश में माहौल पूरी तरह बदला हुआ था. फिर वह पीएम मोदी का पहला कार्यकाल था. ऐसे में एंटी इनकम्बैंसी (सत्ता विरोधी लहर) भी जीरो था.

तेजस्वी ने की छवि गढ़ने की कोशिश
हाल तक बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की 17 महीने की सरकार में तेजस्वी यादव ने अपनी छवि गढ़ने में काफी हर तक सफलता हासिल की है. उनके उपमुख्यमंत्री रहते बिहार की सरकार ने रिकॉर्ड समय में करीब 2.5 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां दी है. ऐसे में जनता के बीच तेजस्वी द्वारा उठाए जा रहे रोजगार के मुद्दे को लोग पहले की तुलना में अब ज्यादा गंभीरता से ले रहे हैं. वह दावा कर रहे हैं कि उनकी वजह से ही बिहार की सरकार ने इतनी नौकरियां दी है.

नीतीश की विश्वसनीयता में बट्टा!
राज्य में इस वक्त तीसरा अहम फैक्टर नीतीश कुमार की विश्वसनीयता में गिरावट भी है. सीएम नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने के कारण कहीं न कहीं उनकी विश्वसनीयता घटी है. हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि नीतीश के पाला बदलने की वजह से उनके वोट बैंक पर क्या असर पड़ेगा. कुल मिलाकर आज हम यह कहने की स्थिति में हैं कि बिहार की राजनीति में 2019 महागठबंधन की जो स्थिति थी वह आज उससे बेहतर स्थिति में है.

आज हम आपके साथ पांच ऐसी लोकसभा सीटों की चर्चा करते हैं जहां महागठबंधन फोकस करे तो उसे सफलता मिल सकती है. पिछली बार इन पांच में से चार पर महागठबंधन के उम्मीदवार बेहद कम अंतर से चुक गए थे. एक सीट पर कांग्रेस पार्टी को जीत मिली थी. ये सीटें है जहानाबाद, कटिहार, पाटलिपुत्र, किशनगंज और आरा.

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जहानाबाद- बीते लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांटे की टक्कर थी. यहां से जदयू के चंदेश्वर प्रसाद मात्र 1751 वोटों से विजयी हुए थे. प्रसाद को 3,35,584 वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी राजद के सुरेश प्रसाद यादव को 3,33,833 वोट मिले थे. यह यादव और भूमिहार जाति बहुल सीट है. यहां 15.80 लाख मतदाता हैं.

कटिहार- इस सीट पर महागठबंधन और एनडीए के बीच मुकाबला तगड़ा है. बीते चुनाव में यहां से जदयू के उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी 5,59,423 वोट लेकर विजयी हुए थे. यहा के कांग्रेस के उम्मीदवार तारिक अनवर को 5,02,220 वोट मिले थे. यानी करीब 57 हजार वोटों का अंतर था. यह मुस्लिम बहुत क्षेत्र है. यहां 54 फीसदी के आसपास मुस्लिम वोटर हैं. ऐसे में राजद अपने कोर वोट बैंक को ठीक से साध ले तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है.

पाटलिपुत्र- इस सीट पर बीते चुनाव में कभी राजद के कद्दावर नेता रहे रामकृपाल यादव भाजपा के टिकट पर विजयी हुए थे. यहां से राजद की ओर से लालू यादव की बेटी मीसा भारती उम्मीदवार थीं. रामकृपाल को कुल 5,09,557 वोट मिले जबकि मीसा को 4,70,236 वोट मिले. यहां जीत का अंतर करीब 40 हजार वोटों का था. पाटलिपुर का जातीय समीकरण देखें तो यहां करीब पांच लाख यादव, तीन लाख भूमिहार और चार लाख कुर्मी वोटर हैं. मौजूदा वक्त में इस लोकसभा की छह में से तीन विधानसभा सीटों मनेर, दानापुर और मसौढ़ी पर राजद का कब्जा है. एक सीट पर कांग्रेस और एक अन्य पालीगंज पर भाकपा माले का कब्जा है. यानी छह में से पांच पर महागठबंधन को जीत मिली है.

किशनगंज- बिहार की 40 में से यही एक मात्र सीट थी जहां से महागठबंधन की ओर से कांग्रेस उम्मीदवार विजयी हुए थे. यहां से कांग्रेस नेता डॉ. मोहम्मद जावेद को 3,67,017 वोट मिले जबकि जदयू के उम्मीदवार सैयद महमूद अशरफ को 3,32,551 वोट मिले थे. इस सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 75 फीसदी वोटर मुसलमान हैं. यह कश्मीर के बाद देश की दूसरी सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाली सीट है. लेकिन, यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का भी अच्छा प्रभाव है. 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के चार विधायक यहीं से जीते थे. बाकी की दो विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और राजद को जीत मिली थी.

आरा- यह राज्य की पांचवी सीट है जहां महागठबंधन थोड़ा उम्मीद कर सकता है. यहां तो भाजपा के आरके सिंह विजयी हुए थे. उनको 5,66,480 वोट मिले थे. दूसरी तरफ उनके खिलाफ खड़े से भाकपा माले के उम्मीदवार थे राजू यादव. वैसे तो दोनों के बीच वोटों का अंतर काफी ज्यादा है. लेकिन, यादव को भी 4,19,195 (38.79 फीसदी) वोट मिले थे. यह यादव और कुशवाहा बहुल सीट है. यहां की राजनीति में लंबे समय तक यदुवंशी और कुशवंशी का दबदबा रहा है. अगर, राजद कुशवाहा वोट को साधने की कोशिश करती है तो मुकाबला दिलचस्प बन सकता है.

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