बिहार की ऑक्सीजन-गर्ल, छठी क्लास में रक्तदान का चैप्टर पढ़कर बनीं ब्लड-डोनर

रिपोर्ट-धीरज कुमार

मधेपुरा. 12 साल की एक बच्ची ने छठी कक्षा में हिंदी साहित्य की किताब में रक्तदान महादान का चैप्टर पढ़ा. इस चैप्टर का संदेश उस बच्ची के दिल और दिमाग में इस कदर सेट हो गया कि वह अबतक 13 बार रक्तदान कर पीड़ितों की जान बचा चुकी है. वह बच्ची अब बड़ी होकर अधिवक्ता बन गई है, लेकिन लोगों की जान बचाने का उसका जुनून कम नहीं हुआ है. इस बच्ची को अब लोग ऑक्सीजन गर्ल के नाम से भी जानते पहचानते हैं. मामला चाहे उसके ब्लड ग्रुप का हो या फिर दूसरे ब्लड ग्रुप का, जरूरतमंद की आवाज पर वह एक्टिव हो जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं मधेपुरा शहर के पश्चिमी बायपास की रहने वाली गरिमा उर्विशा की.

वर्ष 2017 में पहली बार किया रक्तदान
गरिमा बताती हैं कि जब वह छठी कक्षा में पढ़ाई कर रही थीं, तो उस दरम्यान हिंदी की किताब में एक चैप्टर रक्तदान महादान भी था. इसमें उसने रक्तदान की जरूरत और उसके सामाजिक महत्व के संदेश के बारे में जाना. यह कहानी उसके दिल और दिमाग पर न सिर्फ छा गई, बल्कि इस दिन से ही वह खुद के 18 साल का होने का इंतजार करने लगी. 18 वर्ष का होने के बाद साल 2017 में गरिमा ने पहली बार अपने कॉलेज की प्राचार्य को ब्लड डोनेट किया. दुर्भाग्यवश वह नहीं बच पाईं. तभी से उसने लोगों की जान बचाने के लिए समाज को जागरूक करना शुरू कर दिया.

कोविड के दौरान बन गई ऑक्सीजन गर्ल
गरिमा बताती हैं कि कोविड के दौरान जब लोग ऑक्सीजन के लिए परेशान हो रहे थे, तो वह अपनी स्कूटी से भाई सुनीत साना के साथ मिलकर पीड़ितों को उसके घर तक ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाती थी. कोविड के दौरान ‘प्रांगण ब्लड डोनर एप’ बना कर सैकड़ों लोगों को दोनों भाई-बहनों ने रक्त और ऑक्सीजन की मदद की. गरिमा बताती हैं कि वह अब तक 13 बार रक्तदान कर चुकी है. रक्तदान और समाज में बेहतर कार्यों को लेकर बिहार सरकार की ओर 2022-23 में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने गरिमा को सम्मानित किया था. वहीं इसके अलावा दर्जनों छोटे-बड़े राज्यस्तरीय पुरस्कार गरिमा को मिल चुका है. वह आगे कहती है कि हर व्यक्ति को जीवन में रक्तदान करना चाहिए. वह खुद भी जबतक स्वस्थ रहेगी, तब तक रक्तदान करती रहेगी‌.

Tags: Local18, Madhepura news

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