दिल्ली शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल कोलकाता प्रवर्तन निदेशालय नोटिस भेज रहा है। अब तक तीन बार अरविंद केजरीवाल को नोटिस भेजा जा चुका है। लेकिन वह पूछताछ के लिए ईडी के सामने पेश नहीं हुए हैं। दूसरी ओर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी ईडी के चंगुल में फंसे हुए हैं। जमीन घोटाले से जुड़े मामले में उन्हें अब तक सात बार नोटिस भेजा जा चुका है। दोनों ही इंडिया गठबंधन के सदस्य हैं। यानी कि दोनों ही नेता भाजपा के विरोधी है। ऐसे में इस मामले को लेकर राजनीतिक जबरदस्त तरीके से हो रही है। हालांकि, भले ही दोनों नेताओं को अलग-अलग मामलों में ईडी का नोटिस जा रहा है। लेकिन नोटिस को लेकर दोनों ही नेताओं का रवैया लगभग एक जैसा है। दोनों नेता ईडी के नोटिस को पूरी तरीके से हल्के में ले रहे हैं।
भाजपा पर निशाना
अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की ओर से लगातार इसको लेकर भाजपा और केंद्र की सरकार पर निशाना साथा जा रहा है। दोनों नेताओं का साफ तौर पर दवा है कि केंद्र की मोदी सरकार जांच एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है। दोनों ही नेताओं ने इसको लेकर ईडी को पत्र भी लिखा है। ईडी के नोटिस को गैर कानूनी बताया है और साफ तौर पर कहा है कि उनकी छवि को खराब करने के लिए इस तरीके का सामान जारी किया जा रहा है। अरविंद केजरीवाल को तीन बार नोटिस जारी हुआ है जबकि हेमंत सोरेन को सात बार हुआ है। बावजूद इसके दोनों नेता ईडी के सामने पेश नहीं हुए हैं। ऐसे में आप ईडी के सामने क्या विकल्प हैं?
ईडी के सामने सवाल
धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधान, जिसके तहत समन जारी किए जाते हैं, में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि जांच एजेंसी को यह घोषित करना होगा कि जिस व्यक्ति को बुलाया जा रहा है वह आरोपी है या नहीं। दरअसल, प्रावधानों में यह स्पष्ट नहीं है कि समन में किसी व्यक्ति से पूछताछ के आधार का उल्लेख किया गया है या नहीं। हालाँकि, व्यवहार में, ईडी हमेशा उस मामले का उल्लेख करता है जिसमें किसी व्यक्ति को साक्ष्य देने के लिए बुलाया जा रहा है। ईडी के मुताबिक वह किसी व्यक्ति से पूछताछ करने या उचित जांच करने से पहले ही उसे गवाह या आरोपी कैसे घोषित कर सकता है?
पूछताछ के लिए ईडी द्वारा पीएमएलए की धारा 50 के तहत समन जारी किया जाता है। प्रावधान के अनुसार, जांच के प्रयोजनों के लिए ईडी के निदेशक के पास निरीक्षण, किसी व्यक्ति की उपस्थिति को लागू करने, रिकॉर्ड के उत्पादन के लिए मजबूर करने, शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करने आदि के लिए सिविल कोर्ट की शक्ति है। एक ईडी अधिकारी के मुताबिक निदेशक, अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक या सहायक निदेशक के पास किसी भी व्यक्ति को बुलाने की शक्ति होगी जिसकी उपस्थिति वह आवश्यक समझे चाहे इस अधिनियम के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के दौरान सबूत देना हो या कोई रिकॉर्ड पेश करना हो”, और ” इस प्रकार बुलाए गए सभी व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से या अधिकृत एजेंटों के माध्यम से उपस्थित होने के लिए बाध्य होंगे।
यदि व्यक्ति उपस्थित होने से इंकार कर दे तो क्या होगा?
कानून में 10,000 रुपये तक के जुर्माने और भारतीय दंड संहिता की धारा 174 को लागू करने का प्रावधान है, जो ईडी के समन के खिलाफ उपस्थित न होने की स्थिति में एक महीने की जेल की अवधि और/या 500 रुपये के जुर्माने का प्रावधान करता है। पीएमएलए की धारा 63 (2) (सी) के तहत, यदि कोई व्यक्ति ईडी द्वारा जारी किए गए समन का सम्मान करने से इनकार करता है या एजेंसी द्वारा मांगे गए दस्तावेजों या सबूतों को पेश करने से इनकार करता है, तो उसे जुर्माने के रूप में एक राशि का भुगतान करना होगा। पांच सौ रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन ऐसी प्रत्येक चूक या विफलता के लिए इसे दस हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।” धारा 63 (4) कहती है: उप-धारा (2) के खंड (सी) में किसी भी बात के बावजूद, जो व्यक्ति जानबूझकर धारा 50 के तहत जारी किसी भी निर्देश की अवज्ञा करता है, उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 174 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
ईडी क्या करेगी
इसको लेकर ईडी कोर्ट की मदद ले सकती है। ईडी कोर्ट से मामले में पूछताछ की सख्त जरूरत बताते हुए गैर जमानती वारंट किए जाने की भी मांग कर सकती है। ईडी के पास तात्कालिक एक्शन लेने की भी पावर है। मनी लांड्रिंग के मामलों में छापेमारी भी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले की सुनवाई के दौरान ईडी को कहा था कि अगर कोई समन की बावजूद पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहा है तो यह केवल उसकी गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकता है। गिरफ्तारी तभी होगी जब ईडी को यह विश्वास हो कि आरोपित अपराध में शामिल था। असहयोग के लिए गिरफ्तारी के लिए पीएमएलए में कोई मौजूदा प्रावधान नहीं हैं। इस बात की भी कोई सीमा नहीं है कि एजेंसी को इस नतीजे पर पहुंचने से पहले कितने समन जारी करने होंगे कि बुलाया गया व्यक्ति सहयोग नहीं कर रहा है।