बाजार से आने लगी है तिलकुट की सोंधी खुशबू, ठंड के दो महीने रहती है भारी मांग

दिलीप चौबे/कैमूर. ठंड शुरू होते ही बाजारों से तिलकुट की सोंधी खुशबू आने लगी है. हालांकि, मकर संक्रांति पर्व आने में समय है, लेकिन कारोबारी तिलकुट बनाने की तैयारी में जुट गए हैं. बाजार में भी तिलकुट की दुकानें सजने लगी है. कुछ कारोबारी कार्यक्रमों से तिलकुट तैयार करवा रहे हैं तो कुछ तैयार तिलकुट को खरीद कर बिक्री कर रहे हैं. हालांकि, कुछ ऐसे भी कारीगर है जो खुद तैयार कर तिलकुट बिक्री करने का काम करते हैं. तिलकुट के कारोबार में सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. वैसे तो गया के तिलकुट का पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान है. हालांकि, अब कैमूर के भभुआ में भी गया के तर्ज पर ही तिलकुट बनने लगा है.

गया के खस्ता तिलकुट के नाम और स्वाद से सभी परिचित हैं. उसी तरह के तिलकुट की खुशबू भभुआ शहर में मिल रही है. ठंड शुरू होते ही तिलकुट की बिक्री में वृद्धि हो गई है. मकर संक्रांति से पहले ही गया से तिलकुट बनाने वाले कारीगर पहुंच गए हैं. शहर के समाहरणालय पथ, कचहरी पथ, पटेल चौक, नगर परिषद कार्यालय के आस-पास तिलकुट की दुकानें सज गई है और खरीदार भी पहुंचने लगे हैं. तिल गर्म होता है और इसे खाने से फ्लू का असर कम होता है. शहर के खादी भंडार गली में स्थित तिवारी तिलकुट भंडार का बड़ा नाम है. तिलकुट की सबसे अधिक सेल इसी दुकान से होती है.

रोजाना 25 हजार की होती है सेल
दुकानदार लक्की तिवारी ने बताया कि कई साल से तिलकुट की दुकान चलाते आ रहे हैं. मकर संक्रांति के समय ग्राहक तिलकुट की एडवांस बुकिंग कराते हैं. उन्होंने बताया कि कानपुर, पटना व स्थानीय बाजार से तिल मंगाते हैं. वहीं, खोया भी भभुआ की मंडी में ही उपलब्ध हो जाता है. उन्होंने बताया कि तिलकुट का धंधा दो से तीन महीने का ही होता है. इस 3 महीने की दुकानदारी में पूरे साल का खर्च निर्धारित होता है. लक्की तिवारी ने बताया कि तिलकुट के सीजन में रोजाना 25 हजार से अधिक की बिक्री हो जाती है.

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