बसंत पंचमी के दिन गाड़ा जाता है होलिका दहन का ढंडा, अनोखी है परंपरा

अनूप पासवान/कोरबाः- बसंत पंचमी के दिन देशभर में विद्या की देवी मां सरस्वती की उपासना की जाती है. लेकिन इसके साथ-साथ एक और परंपरा देश के अलग-अलग राज्यों में मनाई जाती आई है. यह परंपरा होली और बसंत पंचमी को आपस में जोड़ती है. बसंत पंचमी के दिन यह खास और अनोखी परंपरा जुड़ी हुई है, जो अरंड या एरंड की डाली गाड़ने की है. छत्तीसगढ़ में भी गांवों और शहरों में इस परंपरा को निभाया जाता है. विधि-विधान से अरंड की डाली गाड़ने के बाद होलिका दहन के लकड़ी का इकट्ठा करने की शुरुआत हो जाती है.

चली आ रही ये परंपरा

परंपरा के पीछे की मान्यता को लेकर हमने कथावाचक ज्योतिष आचार्य पंडित दशरथ नंदन द्विवेदी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस दिन होलिका दहन के लिए पहली लकड़ी बसंत पंचमी के दिन गाड़ने की मान्यता इसलिए है कि भक्त प्रह्लाद को हिरण्याकश्यप के द्वारा 45 दिनों तक प्रताड़ित किया गया. होलिका दहन से पहले ये क्रम 45 दिन तक चला था. इसलिए ऐसा माना जाता है कि जिस पहले दिन भक्त प्रहलाद को प्रताड़ित करना शुरू किया गया, उसी दिन से ही होलिका के दहन के लिए एक-एक लकड़ी इकट्ठी करनी शुरू कर दी गई थी. इसलिए आज भी होली के पूर्व बसंत पंचमी को होलिका दहन की पहली लकड़ी गाड़ी जाती है.

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कब है होलिका दहन
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 09 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है. साथ ही इस तिथि का समापन 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा. ऐसे में होलिका दहन 24 मार्च, रविवार के दिन किया जाएगा और होली 25 मार्च को मनाई जाएगी.

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