बननी थी इंग्लैंड की टेम्स नदी, बन गया बदबूदार नाला, खर्च हो चुके 200 करोड़!

ग्वालियर. एक जमाना था जब ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी को शहर की लाइफ लाइन कहा जाता था. राजा महाराजा के दौर में लोग इस नदी में नहाने के लिए आते थे. शहर के बीचों-बीच से प्रवाहित होने वाली स्वर्ण रेखा नदी किसी समय शहर के पेयजल और अन्य जरूरतों को पूरा करने वाली नदी थी. लेकिन, पिछले कुछ दशकों में स्वर्ण रेखा नदी में शहर के नालों के मिलने से हालात बिगड़ने लगे. नदी के किनारों पर अतिक्रमण और पक्का निर्माण होने से धीरे-धीरे इसके अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया. आज आलम ये है कि स्वर्ण रेखा नदी एक बड़े नाले में तब्दील हो गई है.

स्वर्णरेखा के आसपास शहर की करीब 2 लाख से ज्यादा आबादी रहती है. ये लोग नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं. सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे को हाई कोर्ट में ले गए, तो वहां भी शासन-प्रशासन ने कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की. सामाजिक कार्यकर्ता विश्वजीत रतोनिया का कहना है कि स्वर्णरेखा नदी को फिर से प्रवाहित करने के नाम पर कई योजनाएं बनीं. बीते 20 साल के अंदर इसे लंदन की टेम्स नदी की तरह बनाने के नाम पर 200 करोड़ से ज्यादा का खर्च हो चुका है. वहीं, मुरार नदी के कायाकल्प के नाम पर 70 करोड़ खर्च होने के बाद सिर्फ आसपास कच्ची पगडंडी ही बन पाई है.

इस तरह होना था निर्णाण
8 वर्ष पूर्व स्वर्ण रेखा नदी में हनुमान बांध से शर्मा फार्म तक 13 किमी के क्षेत्र में साफ पानी बहाने और नाव चलाने की कवायद शुरू हुई, लेकिन 50 करोड़ खर्च होने के बाद योजना दम तोड़ गई. वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 46 करोड़ की योजना मंजूर की गई. इससे नदी में सीमेंट कांक्रीट से काम होना था. तानसेन नगर, कालू बाबा की बगिया, गायत्री नगर सहित अन्य 6 स्थानों पर पुल भी बनाए जाने थे. लेकिन, ये काम भी अधूरा रह गया.

इसी तरह 2004-05 में विश्व बैंक से 1900 करोड़ की वॉटर री-चार्जिंग योजना के तहत 38 करोड़ की योजना मंजूर हुई. लेकिन योजना पर काम नही हुआ. हनुमान बांध से हजीरा तक नाले के किनारे हरियाली करने और सड़क बनाने की 70 करोड़ की योजना थी, लेकिन तारागंज से ढोली बुआ का पुल, रामद्वारा, जीवाजीगंज, गेंडेवाली सड़क, भैंसमंडी, गुरुद्वारा तक सड़क निर्माण हो सका, वो भी बदहाल है. नदी से नाला बनी स्वर्ण रेखा में साफ पानी और बोट क्लब के रूप में पिकनिक स्पॉट तैयार करने का काम 2008 से शुरू हुआ और 2011 में खत्म हो गया. इस पर 40 करोड़ खर्च हुए फिर भी सीवर का पानी नाले में आता रहा.

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