बदलेंगे लकड़ी खिलौना बनाने वाले परिवार के दिन, DM ने दिया आश्वसान

कुंदन कुमार/गया:- जिले में लकड़ी से खिलौने बनाने वाले कारीगरों के अब अच्छे दिन आने वाले हैं. दरअसल गया जिले के बोधगया प्रखंड क्षेत्र के गंगहर गांव में रहने वाले महेंद्र सिंह और उनका परिवार 50 सालों से भी अधिक समय से लकड़ी के कई खिलौने और जरूरत के सामान बना रहा है. लेकिन इनके पास इस कला को बचाने की दोहरी चुनौती है, जिसमें एक तो बनाने का टैलेंट और दूसरा लकड़ी की समस्या है. अब इसको लेकर जिलाधिकारी ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया है. बताते चलें कि लोकल 18 ने प्रमुखता से इनकी समस्या को उठाया था, जिसके बाद जिला प्रशासन सक्रिय हुआ.

जिलाधिकारी ने दिया यह आश्वासन
इनकी कहानी लोकल 18 पर प्रमुखता से दिखाई गई थी. इस कहानी को देखकर गया के डीएम ने संज्ञान लिया. अब लकडी के खिलौने बनाने वाले परिवार को मदद देने की बात कही है. गया के डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने बताया कि उन परिवार को मुख्यमंत्री उद्यमी योजना, मुख्यमंत्री लघु उद्यमी योजना और प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत लाभ दिया जाएगा. उद्योग विभाग से एक टीम उस गांव में भेजकर जानकारी इकट्ठा की है. हमलोग इनका स्किल डेवलपमेंट करेंगे, ताकि और बेहतर प्रोडक्ट तैयार करें. इसके अलावा लकड़ी की जो समस्या है, उसे भी दूर किया जाएगा. हमलोग या तो लकड़ी का कॉस्ट बेयर करेंगे या उन्हें लकड़ी उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेंगे.

बनाते हैं यह सामान
महेंद्र सिंह और उनका परिवार लकड़ी का लट्टू, सिंहोरा, घीरनी, गुड़िया, इंडियन डॉल, मोर, लालटेन समेत 100 से अधिक खिलौना बनाने का काम करता है. बोधगया में बने लट्टू और सिंहोरा की झारखंड में खूब डिमांड रहती है. यहां बने खिलौने को थोक में झारखंड भेजा जाता है. इसके अलावा विभिन्न जगहों पर जाकर स्टॉल लगाकर वो अपने खिलौने को बेचते हैं. यह परिवार सालों सें विलुप्ति की कगार पर है और इस कला को बचाकर रखे हैं. लेकिन अब इन लोगों के सामने लकड़ी की समस्या उत्पन्न हो रही है.

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झारखंड से आती है लकड़ी
जिस लकड़ी से इस खिलौने का निर्माण किया जाता है, वह झारखंड से मंगाई जाती है. लेकिन यह लकड़ी बिहार में प्रतिबंधित होने के कारण कारीगरों को काफी परेशानी होती है. बता दें कि लकड़ी का खिलौना बनाना इनका पुस्तैनी धंधा है और सालों से इसे बनाते आ रहे हैं. लकड़ी की कमी होने के कारण अब यह परिवार ज्यादा खिलौने का निर्माण नहीं कर पाते हैं. ऐसे में उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई है. अगर इन्हें लकड़ी उपलब्ध करा दी जाए तथा बोधगया में एक स्टॉल मिल जाए, तो यह कला और भी प्रसिद्ध होगी और पूरे भारतवर्ष में पहचान बनाएगी.

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