बदलते मौसम के साथ गेहूं की खेती में करें यह बदलाव, कम लागत में होगा बेहतर उत्पादन 

रितेश कुमार/समस्तीपुर : अगर आप गेहूं की खेती कर रहे हैं या करने वाले हैं, तो आपके लिए यह खबर काम की हो सकती है. बदलते मौसम के परिवेश में उत्पादकता बढ़ाने के लिए किसान को गेहूं की वैज्ञानिक तकनीकी के साथ उत्पादन एवं बीज भंडार पर भी विशेष ध्यान देना होगा. इसपर विशेष जानकारी डॉक्टर सतीश कुमार सिंह ने दी.

उन्होंने कहा कि दोमट से भारी दोमट मृदाओं में गेहूं की खेती सफलतापूर्वक की जाती है. गेहूं की अच्छी उपज के लिए मिट्टी अलमारी या छारिया नहीं होनी चाहिए. खेत में स्वाजनीत पौधे नहीं होने चाहिए एवं जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए. बिहार में गेहूं की बुवाई अधिकतर धान काटने के बाद की जाती है. अतः गेहूं की बुवाई में बहुत देर हो जाती है. हमें पहले से यह निश्चित कर लेना होगा कि खरीफ में धान की कौन सी प्रजाति का चयन करें और रवि में उसके बाद गेहूं की कौन सी प्रजाति को गेहूं की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धन की समय से रोपाई आवश्यक है जिससे गेहूं के लिए खेत अक्टूबर माह में खाली हो जाए.

ऐसे करें खेत तैयार

किसान परंपरागत विधि से गेहूं की खेती करने के लिए खरीफ फसल काटने के बाद मिट्टी पलटने वाले हाल से एक गहरी जुताई करें. मिट्टी की बनावट एवं अन्य स्थितियों के अनुसार हेरो अथवा कल्टीवेटर से करने के साथ पता चला कर बुवाई करें. बुवाई किस समय यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं हो तो जुटा की पूर्व एक सिंचाई कर दें. फिर खेत की तैयारी करें. बताया जाता है कि जीरो टिलेज विधि से गेहूं लगाने वाले भूमि की जुताई नहीं की जाती है.

गेहूं की बुवाई के लिए एक मशीन जिसे जीरो टिलेज मशीन कहते हैं प्रयुक्त होती है जिसे गेहूं की बुवाई दो-तीन सेमी गहराई पर किया जाता है इसे ट्रैक्टर के पीछे बांधकर चलाया जाता है. समय से बुवाई करने वाले प्रजातियों को दिसंबर में बुवाई करने पर गेहूं की तीन से चार कुंतल हेक्टेयर एवं जनवरी में बुवाई करने पर 4 से 5 कुंतल हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से घटती है ऐसे में किसानों को नवंबर के प्रथम सप्ताह से 15 नवंबर तक फसल की बुवाई करने से किसान ओलावृष्टि एवं वर्ष से होने वाली नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है.

जानिए वैज्ञानिक विधि

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, बी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग एवं गेहूं पर जनक के डॉक्टर सतीश कुमार सिंह ने बताया कि बिहार में उगाई जाने वाली गेहूं की उन्नत प्रभेद में समय से बुवाई की जाने वाली पर भेद राजेंद्र गेहूं 3, राजेंद्र गेहूं 4, डी.बी. डब्ल्यू 187, एचडी 2967, विलंब से बुवाई के लिए उपयुक्त प्रभेद राजेंद्र गेहूं 1, डी.बी. डब्ल्यू 107, एच. आई 1563, पी.सी. डब्ल्यू 373, डब्ल्यू आर. 544 (पूसा गोल्ड), एवं सीमित सिंचाई हेतु उपयुक्त प्रभेद में डी.बी. डब्ल्यू252 है. जिस किसान लगा सकते हैं.

बताया जाता है कि सिंचाई की संख्या एवं समय जारी की वर्षा पर निर्भर करता है. परंतु सामान्य परिस्थितियों में बिहार में तीन सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. जिससे मिट्टी के प्रकार फसल की स्थिति एवं जलवायु पर निर्भर करती है. पहले सिंचाई 20 से 25 दिन दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन एवं तीसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों के पश्चात करनी चाहिए. जिससे किसान के खेत में फसल बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.

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