तनुज पाण्डे/ नैनीताल. रिंगाल जिसे निंगाल के नाम से भी जाना जाता है, बैंबू फैमिली का पौधा है. नॉर्थ अमेरिका का नेटिव यह पौधा भारत में पूर्वोत्तर राज्यों समेत उत्तरी भाग में पाया जाता है. यह मानव सभ्यता से जुड़ा हुआ है. प्राचीन समय में लोग इसका प्रयोग बर्तन, हथियार, ज्वेलरी आदि बनाने में किया करते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ ही इससे कई चीजें और बनाई जानें लगीं, जो लोगों की आजीविका का साधन तो बनी ही, साथ ही उनकी रोजमर्रा की चीजें बनाने में भी उपयोग होने लगा. यह भारत में उत्तराखंड समेत कई राज्यों में पाया जाता है.
नैनीताल स्थित डीएसबी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ ललित तिवारी बताते हैं कि रिंगाल का पौधा मानव सभ्यता के साथ ही रचा बसा है. अब इस पौधे का प्रयोग कम हो रहा है. इसका वैज्ञानिक नाम चिमोनोबेमुसा फल्काटा (Chimonobamusa Falcata) है, जो बैंबू फैमिली में आता है. इसे निंगाल, साइनो निंगाल आदि नामों से भी जाना जाता है. उत्तराखंड के कपकोट में इसका प्रयोग मोस्टा और कैन बनाने में किया जाता है. भारत में 15 प्रकार के निंगाल पाए जाते हैं.
आमदनी का जरिया बना रिंगाल
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि नैनीताल और इसके आसपास मिलने वाला रिंगाल का पौधा पतला होता है. पुराने समय में इसका प्रयोग हथियार बनाने में किया जाता था. आदिवासी इसकी ज्वेलरी बनाते थे. वर्तमान समय में इसका प्रयोग अचार के रूप में, ईंधन के रूप में व अन्य में किया जा रहा है.
रिंगाल लोगों की आमदनी का जरिया भी बन रहा है. इससे पाइप, मैट, बास्केट समेत रोजमर्रा में उपयोग होने वाली कई चीजें बनाई जा रही हैं. कई स्वयं सहायता समूह की महिलाएं रिंगाल की वस्तुएं बनाकर स्वरोजगार कर रही हैं. इसके अलावा रिंगाल भूस्खलन रोकने में भी सहायक है. पुराने समय में इसका उपयोग शादियों के मौके पर गेट बनाने, कलम के रूप में भी किया जाता था.
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FIRST PUBLISHED : February 5, 2024, 21:10 IST