घटना 1966 की है. घटना स्थल बस्तर था. लेकिन,इसका असर 1967 के लोकसभा चुनाव में रायपुर की सीट पर देखा गया. आचार्य जेबी कृपलानी इस सीट से चुनाव लड़े एक साधारण से व्यक्ति से चुनाव हार जाते हैं. इसके बाद कृपलानी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा. 1947 में जब भारत को आजादी मिली उस वक्त कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य कृपलानी ही थे. उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू से अपने मतभेद के चलते कांग्रेस छोड़ दी थी. रायपुर से 1967 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ लड़ा था. कांग्रेस की आरे से उम्मीदवार थे के.एल. गुप्ता. आचार्य कृपलानी के मुकाबले में वे कांग्रेस के छोटे से नेता थे. चुनाव में जीत गुप्ता की हुई. कृपलानी जन कांग्रेस के बैनर से चुनाव लड़े थे. उन्हें रायपुर के चुनाव मैदान में उतारने वाले वे लोग थे जो बस्तर में प्रवीर चंद्र भंजदेव और आदिवासियों पर हुए गोली चालन की घटना के बाद सक्रिय थे. आचार्य कृपलानी ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के विरोध में जेल भी गए थे. आपातकाल के नायकों में शामिल विद्याचरण शुक्ल भी रायपुर की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं.
रमेश बैस ने रायपुर को बनाया भाजपा की मजबूत सीट
रायपुर लोकसभा की सीट सामान्य वर्ग है. अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष 1999 तक रायपुर की लोकसभा सीट प्रतिष्ठित सीटों में एक रही है. छत्तीसगढ़ वर्ष 2000 में अलग राज्य बना. इसमें लोकसभा का पहला चुनाव वर्ष 2004 में हुआ. छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने से पहले ही इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. इस लोकसभा सीट पर अब तक सबसे ज्यादा बार भाजपा के रमेश बैस को मौका मिला. रमेश बैस ने वर्ष 2004 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल और वर्ष 2009 में भूपेश बघेल को हरा दिया था. इससे पहले वे विद्याचरण शुक्ला और केयूर भूषण को भी हरा चुके थे. रायपुर लोकसभा सीट के तहत 9 विधानसभा सीटें हैं. सामान्यत: आठ विधानसभा सीटों से एक लोकसभा क्षेत्र बनाया जाता है. रायपुर लोकसभा में रायपुर पश्चिम, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, रायपुर ग्रामीण, आरंग, धरसींवा, बलौदाबाजार, भाटापारा और अभनपुर की विधानसभा सीट आती है.
विद्याचरण शुक्ल को रायपुर में मिली दो बार हार
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे विद्याचरण शुक्ल को रायपुर लोकसभा सीट से ही पहचान मिली. 1971 में हुए चुनाव में मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल के पुत्र विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जनसंघ के प्रत्याशी बाबूराव पटेल को 84 हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित किया था. वहीं आपातकाल में विद्याचरण शुक्ल भी लोगों के गुस्से से बच नहीं पाए और 1977 में हुए चुनाव में लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर खड़े पुरुषोत्तम लाल कौशिक से 85 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित हुए थे. विद्याचरण शुक्ला इस सीट से कुल चार बार लोकसभा का चुनाव लड़े. दो बार जीते और दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
रायपुर लोकसभा की सीट सामान्य वर्ग है.
वर्ष 2013 में झीरम घाटी की घटना में विद्याचरण शुक्ल की हत्या हो गई थी. रमेश बैस वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सुनील सोनी को रायपुर की लोकसभा सीट से मैदान में उतारा था. रमेश बैस के हिस्से राजभवन की राजनीति आई थी. त्रिपुरा के बाद बैस महाराष्ट्र भेज दिए गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में रमेश बैस ने कांग्रेस के कद्दावर नेता सत्यनारायण शर्मा को हराया था. रमेश बैस इस सीट पर वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में पराजित हुए थे. रायपुर लोकसभा सीट पर 46 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र ग्रामीण है.
रायपुर लोकसभा सीट से जुड़ा है मिनी माता का नाम
रायपुर की लोकसभा सीट से एक नाम मिनी माता का भी जुड़ा हुआ है. 1916 में असम के नगांव जिले में जन्मी मीनाक्षी पूरे देश में ”मिनीमाता” के नाम से जानी जाती थीं. उनकी शिक्षा गर्ल्स स्कूल, नवागांव और रायपुर में हुई थी. जीवन में विपरीत परिस्थितियों से निरंतर मजबूती के साथ लड़ते हुए मीनाक्षी मिनीमाता के रूप में पूरे देश और खास कर छत्तीसगढ़ के लोगों की मसीहा बनीं. मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला लोकसभा सदस्य थीं. समाज में पिछड़ापन और छुआछूत जैसी तमाम कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. अस्पृश्यता बिल को पास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, साथ ही बाल विवाह, दहेज प्रथा, गरीबी और अशिक्षा दूर करने के लिए भी आवाज उठाती रहीं.
साहू-कुर्मी जाति के दबदबे वाली सीट
रायपुर की लोकसभा की सीट पर बड़ी आबादी साहू समाज की है. सोलह प्रतिशत से अधिक साहू वोटर हैं. इसके बाद यादव वोटर आते हैं. यह छह प्रतिशत से ज्यादा हैं, जबकि कुर्मी वोटर की संख्या इससे कम है. इस लोकसभा सीट पर सिख समुदाय के वोटरों का भी असर है. मुस्लिम वोटर चार प्रतिशत से अधिक हैं. कुल वोटों की संख्या 88 हजार से ज्यादा है. भाजपा इन वोटरों को मोदी मित्र योजना के जरिए जोड़ने की कोशिश लगातार कर रही है. इस सीट पर अनुसूचित जाति की आबादी 17.2 प्रतिशत के लगभग है और अनुसूचित जनजाति 6.18 प्रतिशत के करीब है. अनुसूचित जाति,जनजाति और मुस्लिम वोटर का समीकरण से कांग्रेस को कोई बड़ा फायदा नहीं मिला. मौजूदा सांसद सुनील सोनी के समुदाय के वोटरों की संख्या 0.08 प्रतिशत होने के बाद भी वे चुनाव जीत गए थे, जबकि उनके खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार प्रमोद दुबे को दो प्रतिशत ब्राह्मण वोटर भी नहीं जीता पाए. रायपुर उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में जातिगत समीकरणों ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाते क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र में सभी वर्ग के मतदाता शामिल हैं. इस सीट पर उम्मीदवार चुनाव अपनी साख पर लड़ता है. हार-जीत भी इससे ही तय होती है. दो माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा की निगाह अति पिछड़ा वोटरों पर भी है. कांग्रेस की ओर से संभव है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आजमाया जाए. विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस इस संसदीय सीट में आने वाली नौ में से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
परंपरागत सुनार परिवार से हैं सुनील सोनी
रायपुर के मौजूदा सांसद सुनील सोनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं. उनके पिता संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे. उनकी सुनार की दुकान है. सांसद सुनील सोनी अपनी पुश्तैनी दुकान को ही चलाते हैं. उनकी पत्नी तारा देवी गृहणी है. सोनी की संपत्ति को लेकर कोई प्रमाणिक जानकारी सामने नहीं है. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उनकी कुल चल-अचल संपत्ति चार करोड़ रुपए के आसपास होगी. वैसे लोकसभा चुनाव के समय जो जानकारी उनके द्वारा प्रस्तुत की गई है उसके अनुसार 79 लाख की संपत्ति के मालिक हैं. सुनील सोनी ने 13 लाख रुपए का लोन भी बताया था. संपत्ति के घोषणापत्र में सुनील सोनी ने ने सदर बाजार की अपनी सोने-चांदी की दुकान का भी उल्लेख किया है. उनका निवास भी वहीं है.
रमेश बैस सबसे लंबे समय तक इस सीट पर सांसद रहे हैं
पिछले पांच चुनाव के परिणाम
वर्ष 1999 – भाजपा- रमेश बैस (जीते) – 354736 – कांग्रेस- जुगल किशोर साहू (हारे)- 274676
वर्ष 2004 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 3,76,029 – कांग्रेस – श्यामाचरण शुक्ल (हारे)- 2,46,510
वर्ष 2009 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 3,64,943 – कांग्रेस – भूपेश बघेल (हारे) – 3,07,042
वर्ष 2014 – भाजपा – रमेश बैस (जीते) – 6,54,922 – कांग्रेस – सत्यनारायण शर्मा (हारे) – 4,83,276
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FIRST PUBLISHED : February 2, 2024, 15:42 IST