आशुतोष तिवारी/रीवा : मध्यप्रदेश में बघेलखांड का इलाका न सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए बल्कि स्थानीय प्राचीन परंपराओं और ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है. यहां के स्थानीय लोक नृत्य लोकगीत आज भी प्रचलन में है. शादियों में या उत्सव के किसी भी कार्यक्रम में पहले बघेलखंड का मशहूर लोक नृत्य दुलदूल घोड़ी हर घर में हुआ करता था. रीवा के कलाकार रंगकर्मी राजमणि तिवारी भोला के द्वारा आज भी इस कला को जीवित रखा गया है. दुलदुल घोड़ी का प्रदर्शन देश के कई राज्यों के बड़े मंचो पर राजमणि तिवारी भोला कर रहे है.
कलाकार राजमणि तिवारी भोला ने बताया कि बघेलखंड में पहले बहुत सी कलाए थी जो काफी समृद्ध थी. दुलदुल घोड़ी भी उनमें से एक लोकनृत्य था. इस लोकनृत्य को लिल्ली घोड़ी लोकनृत्य भी कहा जाता है. लेकिन बदलते दौर के साथ पश्चात संस्कृति ने इन कलाओं को काफी नुकसान पहुंचाया है. आज के दौर में डीजे की धुन में थिरकना लोग पसंद करते है लेकिन अपने कलाओं को जीवित रखने की रुचि अब लोगों में नहीं है. यह नृत्य उत्साह और उत्सव का प्रतीक है. बघेलखंड में जब पहले शादी ब्याह हुआ करते था उसमे व्यक्ति विदूषक के रूप में काठ यानी लकड़ी की घोड़ी पहन कर बारात के आगे आगे बड़ा उत्साह से चला करता था. उसको लोग बड़े ही प्यार से बुलाते थे. वो सभी का मनोरंजन किया करता था. उस समय मेले में त्योहारों दुलदुल घोड़ी का नृत्य करने वाले आसानी से मिल जाते थे.
नृत्य के जरिए समसामयिक समस्याओं पर होती थी बात
कलाकार राजमणि तिवारी भोला ने बताया कि पहले कलाकार अपने नृत्य के जरिए लोकगीत के माध्यम से समसामयिक समस्याजों पर बात किया करते थे. और समाज की बुराइयों को लेकर जागरूक भी किया करते थे. इसी लोक नृत्य के माध्यम से पहले लोगों का मनोरंजन किया जाता था. उसी से उन कलाकारों को कुछ पैसे भी मिल जाते थे.धीरे धीरे समय बदलता गया चीजें बदलती गई है. और धीरे धीरे बैंडवाजा और डीजे संस्कृति के कारण ऐसे बहुत से कलाकार है जिनका जीवन यापन ही संकट में पड़ गया. इसलिए अब पुराने कलाकारों ने इस कला को छोड़ दिया. लोग अब लोक कला करने के बजाय मजदूरी करना बेहतर समझने लगे हैं. राजमणि तिवारी भोला ने बताया कि मैं अभी भी इस कला का प्रदर्शन कर रहा हूं. और इस कला को अच्छा से अच्छा मंच देने का प्रयास कर रहा हूं.
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FIRST PUBLISHED : February 19, 2024, 12:00 IST