फिर सामने आया मायावती का ‘तिलक-तराजू और तलवार’ विरोधी चेहरा

उत्तर प्रदेश की राजनीति में धर्म का तड़का कोई नई बात नहीं है। धर्म के नाम पर कांग्रेस, सपा, बसपा जैसी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत करती हैं तो भारतीय जनता पार्टी धर्म के नाम पर हिन्दू वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में लगी रहती है। यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि मौजूदा दौर में यूपी के अंदर सभी राजनैतिक दल और उसके नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए कहीं न कहीं समाज के बीच धार्मिक विद्वेष फैलाकर इनके बीच खाई पैदा करने का काम ठीक वैसे ही कर रहे हैं, जैसे कभी बीजेपी ने ‘रामलला हम आयेंगे, मंदिर वहीं बनवायेंगे का और बसपा ने ‘तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का एवं समाजवादी पार्टी ने ‘80 हराओ, बीजेपी हटाओ’ का नारा दिया था। बीएसपी के संस्थापक कांशीराम को तो मानो चुनावी नारे गढ़ने में महारथ हासिल थी। उन्होंने बसपा के साथ पिछड़ों और दलितों को लाने के लिए नारा दिया था ‘ठाकुर बामन बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-फोर’। देखा जाये तो एक तरफ नारों से वोटरों को अपनी तरफ खींचा जाता है।

वोटरों को लुभाने के लिए हमारे नेता विवादित भाषा बोलने से भी परहेज नहीं करते हैं। तमिलनाडु सरकार में मंत्री डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के मंत्री प्रियांक खरगे, बिहार सरकार के मंत्री चंद्रशेखर और उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य की सनातन धर्म के विरुद्ध मुखरता सबने सुनी है। इसी तरह बसपा का भी मौन मिशन सनातन धर्म के खिलाफ लगातार चल रहा है। पार्टी की अधिकृत वेबसाइट पर ‘सच्ची रामायण की चाभी’ नाम से वह पुस्तक अपलोड है, जिसमें भगवान विष्णु, श्रीराम, माता सीता आदि पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं।

वैसे यह बात किसी से छिपी नहीं है कि बसपा सुप्रीमो मायवती हमेशा दलितों के पक्ष में उत्तर प्रदेश सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड आदि राज्यों में खुलकर जातिवादी राजनीति करती हैं। बेशक उनकी ताकत यह वोटबैंक है, लेकिन उन्हें अब तक यूपी की सत्ता तभी मिली है, जब सवर्णों ने उनका साथ दिया। मायावती इसे जानती हैं, इसीलिए उनकी पार्टी एक तरफ ‘तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते जैसे विवादित नारे के पीछे खड़ी रहती है तो दूसरी ओर ’सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की भी बात करती है। साथ ही सोशल इंजीनियरिंग को भी वह अपना चुनावी हथियार बनाती हैं। इसके इतर बसपा की अधिकृत वेबसाइट ‘बीएसपी इंडिया डॉट इन’ पार्टी की सनातन विरोधी तस्वीर दिखाती है। इस वेबसाइट में पार्टी के आंदोलन, उपलब्धियों, संगठनामक संरचना आदि की जानकारी के साथ ही हमारे आदर्श नाम से एक कॉलम है। इसमें संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर और बसपा संस्थापक कांशीराम के साथ ही पेरियार ललई सिंह यादव का नाम और जीवनी लिखी है। यहां ललई सिंह की उपलब्धियों के तौर पर लिखा है गया है कि है सच्ची रामायण कैसे जीती कानूनी लड़ाई। इसमें लिखा है कि द्रविड़ आंदोलन के अग्रणी सामाजिक क्रांतिकारी पेरियार ईवी रामासामी नायकर की किताब सच्ची रामायण को पहली बार हिंदी में लाने का श्रेय ललई सिंह यादव को जाता है। इस लिंक को खोलते ही सामने आता है कि बसपा की वेबसाइट से किस तरह सनातन धर्म के विरुद्ध विषवमन किया जा रहा है। इसमें एक तो रामायण को कल्पना बताया गया है दूसरे रामायण की व्याख्या करते हुए भगवान विष्णु, श्रीराम, माता सीता, राजा दशरथ, राजा जनक सहित कई पात्रों के लिए बहुत ही घृणित शब्दों का प्रयोग किया गया है। खैर, सच्चाई यह भी है कि बसपा को उसकी जातिवादी राजनीति के कारण ही वोटरों ने हाशिये पर डाल दिया है। इतना ही दलितों में भी जाटवों के अलावा अन्य वर्गों ने बसपा से मुंह फेर लिया है। इसी का नतीजा यह है कि भारतीय जनता पार्टी के सांसदों और विधायकों में बड़ी संख्या दलित नेताओं की भी है। बसपा ने अपनी छिछोरी राजनीति को नहीं छोड़ा तो अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भी बसपा की हालत पतली हो सकती है।

-अजय कुमार

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