प्रोटीन से भरपूर होता है सोयाबीन, यूपी के तराई क्षेत्रों में कैसे शुरू हुई इसकी खेती? जानें इतिहास

सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर: सोयाबीन प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत माना जाता है. सोयाबीन को फाइबर रिच फूड कहा जाता है. स्वास्थ्य जानकारों की मानें तो  पोषक तत्वों से भरपूर सोयाबीन का सेवन करने से पाचन भी दुरुस्त रहता है. इसके अलावा सोयाबीन खाने से मसल्स और हड्डियों को मजबूती मिलती है. सोयाबीन में जितने गुण पाए जाते हैं. उससे कहीं ज्यादा यह जानना रोचक है कि शाहजहांपुर और इसके आसपास के जिलों के अलावा तराई के इलाके में सोयाबीन की खेती कैसे शुरू हुई?

इतिहासकार डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि हिमालय की पहाड़ियों की तलहटी में सोयाबीन के उत्पादन के कई स्रोत तो आदिकाल से मिलते हैं. लेकिन आधुनिक काल की बात की जाए तो सन 1656 में डचों द्वारा हुगली के आसपास और बंगाल के इलाकों में सोयाबीन की खेती के कुछ प्रमाण भी मिलते हैं. शाहजहांपुर, रोहिलखंड और तराई की बेल्ट में सोयाबीन की खेती के लिए रॉबर्ट डब्ल्यू नेव और उनके मित्र पीटर चेफिन ने व्यापक कार्य किया.

शिक्षा को लेकर काम किया, फिर स्वास्थ्य सुधार
इतिहासकार डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि रॉबर्ट डब्ल्यू नेव और उनके मित्र पीटर चैफिन अमेरिकन मिशनरी से जुड़े हुए थे और शाहजहांपुर में उनके द्वारा एक टेक्निकल स्कूल और सीनियर सेकेंडरी स्कूल की स्थापना मिशनरी प्रांगण में की थी. सन 1860 से ही अमेरिकन मिशनरी के सेटलमेंट लोधी पर स्थित कन्नौज घाटी में होने लगे थे. यहां उन्होंने स्कूल के साथ-साथ अनाथालय और बच्चों के लिए प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की थी.

महिलाओं में खून की कमी को लेकर जताई चिंता
अमेरिकन मिशनरी से जुड़े रॉबर्ट डब्ल्यू नेव और उनके मित्र पीटर चैफिन ने देखा कि यहां की महिलाओं के अंदर रक्त अल्पता और प्रोटीन की भारी कमी है. और वह यहां के किसानों की आय को भी बढ़ना चाहते थे. ऐसे में रॉबर्ट नेव और चैफिन ने पंतनगर के डिक मशुरा से संपर्क किया. जिन्होंने उन्हें यहां सोयाबीन की खेती करने की सलाह दी.

SPRA की स्थापना के साथ किसानों को बीज मुहैया कराए
सन 1950 के दशक में रॉबर्ट नेव की अगुवाई में सोयाबीन के रिसर्च संगठन SPRA (सोयाबीन प्रोडक्ट रिसर्च एसोसिएशन) की बरेली क्षेत्र में स्थापना हुई. इस दौरान बड़ी संख्या में शाहजहांपुर, बरेली, उधम सिंह नगर और आसपास के जिलों सहित तराई के इलाके के किसानों को सोयाबीन की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया और किसानों को अत्याधुनिक बीज भी मुहैया कराए. मार्च 1971 में एनटीआई सोया प्रोडक्ट्स के नाम से एक उत्पाद भी निकाला गया जो नेव टेक्निकल इंस्टिट्यूट शाहजहांपुर के नाम से लोकप्रिय हुआ.

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