भरत तिवारी/ जबलपुर.रामायण के अनुसार जब श्री राम ने अपने पुत्रों को राजपाठ सौंप कर जल समाधि ले ली थी, उसी के बाद से त्रेता युग का अंत और द्वापर युग की शुरुआत हो गई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री राम समेत उनके तीनों भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के दो-दो पुत्र थे जिन्होंने श्री राम के बाद राजपाठ संभाला था, जिसमें से श्री राम के पुत्र लव ने लवपुरी का निर्माण किया जिसे आज हम लाहौर के नाम से जानते हैं, जोकि पाकिस्तान में मोजूद है, और लव के बड़े भाई कुश ने कुशावती नगर की स्थापना की जो आज छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रतापी राजा कुश की मृत्यु दुर्जय नामक एक असुर से युद्ध के दौरान हुई थी. अपने इसी शासनकाल में राजा कुश ने जबलपुर की इस जगह में कई वर्षों तक तपस्या की थी और भोलेनाथ के शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसे आज हम कुशवर्तेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं.
कैसे पड़ा नाम कुशवर्तेश्वर महादेव
मां नर्मदा की भूमि जबलपुर की जिलहेरी घाट में मां नर्मदा के पास में ही स्थित कुशवर्तेश्वर महादेव मंदिर में जब हमने वहां मौजूद बाबा से बात की तब उन्होंने बताया कि राजा कुश ने इस जगह पर भोलेनाथ के इस प्राचीन शिवलिंग की यहां स्थापना की थी और इसी जगह पर उन्होंने सालों तपस्या भी की थी, बाबा ने हमें बताया कि भोलेनाथ के इस मंदिर का निर्माण भी करीब 560 वर्ष पहले किया गया था, और इस मंदिर का निर्माण किसके द्वारा करवाया गया था, यह बात आज भी एक प्रश्न है.
करीब 560 वर्ष पुराने इस प्राचीन मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गोंडवाना काल में रानी दुर्गावती भी यहां पर आकर भोलेनाथ की आराधना किया करती थी और राजा कुश की तपोस्थली होने के कारण ही भोलेनाथ के इस मंदिर का नाम कुशवर्तेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया.
मंदिर में परिक्रमा वासियों के लिए रुकने की है व्यवस्था
जबलपुर के जिल्हेरी घाट में स्थित कुशवर्तेश्वर महादेव मंदिर में मां नर्मदा के परिक्रमा वासियों के रुकने की भी पूर्ण व्यवस्थाएं की गई है, जहां पर दूर-दूर से परिक्रमावासी मां नर्मदा की परिक्रमा के दौरान यहां पर पहुंचते हैं और विश्राम करते हैं. भोलेनाथ का यह शिवलिंग द्वापर युग से यहां पर स्थापित है और भोलेनाथ के इस मंदिर का निर्माण बताया जाता है कि करीब 560 वर्ष पहले करवाया गया था, मंदिर को लेकर काफी मान्यताएं जुड़ी हुई है यहां पर रोजाना कई भक्त भोलेनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं लेकिन इनमें से कुछ ही भक्तों को भोलेनाथ के इस दैविक स्थल इतिहास के बारे में जानकारी है.
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FIRST PUBLISHED : January 6, 2024, 15:08 IST