प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भ्रष्टाचार की गंदगी: मंत्री और विभागीय जांच में मेंबर सेक्रेटरी अजय कुमार शर्मा दोषी; इसके बाद भी बरस रही किसकी कृपा

लखनऊ43 मिनट पहलेलेखक: अनुभव शुक्ला

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यह मेंबर सेक्रेटरी अजय कुमार शर्मा हैं। - Dainik Bhaskar

यह मेंबर सेक्रेटरी अजय कुमार शर्मा हैं।

योगी सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी पर भले ही काम करने का दावा करती हो, लेकिन कुछ अफसर शायद इस पॉलिसी को नहीं मानते। भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त एक्शन लेने वाली इस सरकार में भी भ्रष्टाचार के नए रिकॉर्ड बना रहे हैं।

सीएम योगी ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ योगी वन से लेकर अब तक बड़ी कार्रवाई की है। जो अपने आप में नजीर साबित हुई है, लेकिन उसके बावजूद भी कुछ विभागों में ऐसे अफसर बैठे हैं। जो अपने क्रिया कलापों से सरकार की पॉलिसी पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।

दैनिक भास्कर आपको बताएगा कि कैसे यूपी में एक महत्वपूर्ण बोर्ड में तैनात अफसर भ्रष्टाचार की नई इबारत लिख रहा है। कैसे तमाम शिकायतों और विभागीय जांच के बाद भी अभी तक वह अपने पद पर बना हुआ है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़ा है भ्रष्टाचार का मामला
दरअसल, भ्रष्टाचार का ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़ा है। जो वन एवं पर्यावरण विभाग के अंतर्गत आता है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में वैसे तो सबसे उच्च पद अध्यक्ष का है, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जेपीएस राठौर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन थे फिर उनके सरकार में मंत्री बन जाने के बाद से ही वह पद खाली है।

चेयरमैन के बाद उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सबसे महत्वपूर्ण होता है मेंबर सेक्रेटरी। इस वक्त अजय कुमार शर्मा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव है और भ्रष्टाचार का यह पूरा मामला अजय कुमार शर्मा से ही जुड़ा है।

वन राज्यमंत्री ने अजय कुमार शर्मा की शिकायत मुख्यमंत्री से पत्र लिखकर की थी

अजय कुमार शर्मा के भ्रष्टाचार को लेकर खुद विभाग के मंत्री मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं । इसके अलावा विभागीय जांच में भी अजय कुमार शर्मा को भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया है।

इतना ही नहीं अजय कुमार शर्मा की लोकायुक्त की भी जांच चल रही है। लेकिन मजाल है किसी की की वो अजय कुमार शर्मा को उनके पद से हटा दे। इतना सब होने के बाद भी अजय कुमार शर्मा अपने पद पर बने हुए हैं।

अजय कुमार शर्मा पहले मुख्य पर्यावरण अधिकारी के पद पर तैनात हैं, लेकिन जुलाई 2021 में अजय कुमार शर्मा को मेंबर सेक्रेटरी का अतिरिक्त कार्यभार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सौंपा गया। फिर मार्च 2022 में अध्यक्ष जीपीएस राठौर ने सरकार में मंत्री बनने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद अजय कुमार शर्मा ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सबसे ज्यादा पावरफुल हो गए।

हर निर्णय फिर अजय कुमार शर्मा अपनी मर्जी से करने लगे। किस कंपनी को एनवायरन्मेंटल क्लीयरेंस देनी है, किस कंपनी को एनवायरन्मेंटल क्लीयरेंस नहीं देनी है। किसे एनओसी जारी करना है, किसे नहीं? सब में अगर निर्णय लेने वाला कोई था, तो वो थे मेंबर सेक्रेटरी अजय कुमार शर्मा।

इसी साल जनवरी महीने में कुछ शिकायतें अजय कुमार शर्मा के भ्रष्टाचार से जुड़ी जब उत्तर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री केपी मलिक के पास पहुंची तो उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अजय कुमार शर्मा की कारगुजारियों के बारे में अवगत कराया था।

केपी मलिक ने अपने पत्र में साफ तौर पर लिखा था कि जब अजय शर्मा को 2021 में अतिरिक्त कार्यभार दिया गया तब भी उनके खिलाफ सीतापुर जिले में आपराधिक मामला दर्ज था। उस समय भी तथ्यों को छुपाते हुए अजय कुमार शर्मा को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मेंबर सेक्रेटरी तत्कालीन वन मंत्री दारा सिंह चौहान ने बना दिया था।

पत्र में केपी मलिक ने साफ तौर पर लिखा है कि अजय कुमार शर्मा मुख्य पर्यावरण अधिकारी वृत्त सात बरेली का भी कार्यभार देख रहे हैं और आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दैनिक भास्कर के पास केपी मलिक के उस पत्र की कॉपी भी मौजूद है जिसमें उन्होंने अपने ही विभाग के एक अधिकारी के भ्रष्टाचार को लेकर इस तरह की बातें लिखी हैं।

केपी मलिक अपने पत्र में आगे लिखते हैं कि अजय कुमार शर्मा ने बिना सक्षम स्तर के अनुमोदन के अपने स्तर से ही एनओसी जारी कर दे रहे हैं। और बोर्ड से पारित आदेशों का भी अनुपालन नहीं कर रहे हैं। और इसके एवज में इकाइयों से काफी धनराशि की भी वसूली की जा रही है।

यह शब्द उनके पत्र में साफ तौर पर लिखा हुआ है। यानी मंत्री ये खुद मान रहे है कि उनके विभाग में तैनात अफ़सर किस तरह से भ्रष्टाचार कर रहा है। वह भी प्रदूषण इकाइयों से जुड़ी इकाईयों को NOC देने के लिए पैसे की वसूली की जा रही है।

इतना ही नहीं पत्र में तो यह भी साफ तौर पर लिखा है कि अजय कुमार शर्मा के पद पर रहते हुए उनकी निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती ऐसे में जब तक उनकी जांच हो उन्हें पद से हटकर किसी अन्य अधिकारी को मेंबर सचिव के पद पर तैनात किया जाए।

शायद कोई मंत्री इससे ज्यादा कड़े शब्दों में भ्रष्टाचार की बात को उजागर करेगा। लेकिन, अजय कुमार शर्मा की सेटिंग का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस पत्र को लिखे 8 महीने बीत गए लेकिन मेंबर सेक्रेटरी अभी भी अपने पद पर बने हुए हैं।

विभागीय जांच में अजय कुमार शर्मा पाए गए भ्रष्टाचार के दोषी

अगर आपको लग रहा हो कि मंत्री तो अफसर से चिढ़ कर भी उसके बारे में ऐसा लिख सकते हैं । तो अजय कुमार शर्मा के खिलाफ विभाग की ओर से जो जांच कराई गई उस जांच में भी अजय कुमार शर्मा भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए। मंत्री ने तो पत्र में केवल यह लिखा कि इन्होंने इकाइयों से धन वसूला है।

जबकि जांच कमेटी ने तो एक-एक पॉइंट साफ किया कि कैसे अजय कुमार शर्मा ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए दूसरी कंपनी को नुकसान पहुंचाया। सारे नियमों को दरकिनार कर दिया। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक तरफ निवेशकों को प्रदेश में लाने के लिए इन्वेस्टर समिट और ग्लोबल इन्वेस्टर समिट करा रही है तो, वहीं मेंबर सेक्रेटरी ने जानबूझकर निवेश करने वाली कंपनियों को हतोत्साहित किया।

इसी साल फरवरी में अजय कुमार शर्मा के खिलाफ जब शिकायतें मिली और मंत्री ने पत्र लिखा तब जाकर विभाग ने भी एक जांच समिति बनाई। समिति की जिम्मेदारी गौरव वर्मा को दी गई । मार्च 2023 में जो रिपोर्ट जांच अधिकारी ने भेजी उसकी कॉपी भी दैनिक भास्कर के पास उपलब्ध है। जिन बातों का जिक्र जांच अधिकारी ने किया है उसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि

अपनी चहेती कंपनियों को अजय शर्मा ने बिना एनवायरन्मेंटल क्लीयरेंस के ही CTE प्रदान कर दी। इसमें यह भी लिखा गया है कि अधिकारीगण पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। अजय शर्मा द्वारा सार्वजनिक सुनवाई एवं EC जारी करने में अनावश्यक देरी जानबूझकर की गई।

एक कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरी कंपनी के एनवायरन्मेंटल क्लीयरेंस को जानबूझकर रोका गया। साफ तौर पर जांच कमेटी ने ये पाया की एक कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के दोषी अजय कुमार शर्मा हैं।

इतना ही नहीं किसी भी इकाई के लिए यह आवश्यक है कि एनवायरन्मेंटल क्लीयरेंस से पहले उसके पास भूमि का आवंटन होना चाहिए। लेकिन, अजय कुमार शर्मा ने अपनी चहेती कंपनी को पहले EC का ऑनलाइन आवेदन कराया और उसके बाद भूमि आवंटन का आवेदन किया गया ।जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है की भूमि आवंटन TOR जारी होने के बाद हुआ यह घोर अनियमितता है।

इसके अलावा जितनी जमीन सीडब्ल्यूएटीएफ के लिए कंपनी के पास होनी चाहिए जिस कंपनी को अजय कुमार शर्मा ने पर्यावरण की मंजूरी दी उसके पास उतनी जमीन भी नहीं थी । और उसे पर्यावरण की मंजूरी मिल गई। CBWTF के लिए नियम है कि 4047 वर्ग मीटर की जमीन इकाई के पास होनी चाहिए जबकि उस कंपनी के पास 3601 वर्ग मीटर ही जमीन उपलब्ध थी ।

जांच रिपोर्ट में यह साफ तौर पर लिखा है कि इस प्रकरण में अजय कुमार शर्मा सदस्य सचिव की सत्य निष्ठा अत्यंत संदिग्ध है । रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक तरफ सरकार जहां इन्वेस्टमेंट समिट करा रही है निवेश पर जोर दे रही है तो दूसरी तरफ अजय कुमार शर्मा कंपनियों को हतोत्साहित कर रहे हैं यह घोर अनियमितता है।

जहां समिति ने इस रिपोर्ट में जो संस्तुति दी उसमें यह कहा गया कि अजय कुमार शर्मा सदस्य सचिव की सत्य निष्ठा संदिग्ध होने के कारण उनके कार्यालय की गहन जांच कराई जाए ।

कंपनियों के साथ पक्षपात पूर्ण कार्रवाई करना नियम विरुद्ध लाभ पहुंचाना इनकी निष्पक्ष कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह उठाता है । इतने संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण पद पर बने रहने की समीक्षा करने की संस्तुति इनके खिलाफ की जाती है।

लोकायुक्त की जांच भी अजय कुमार शर्मा की शुरू

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सचिव अजय कुमार शर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त के यहां परिवाद दायर किया गया है। हालांकि इससे पहले भी लोकायुक्त के यहां अजय कुमार शर्मा की शिकायत हो चुकी है।

लेकिन इस बार लखनऊ के निवासी विनोद पांडेय ने अजय कुमार शर्मा के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत की है और उस शिकायत पर लोकायुक्त ने जांच भी शुरू कर दी है। लोकायुक्त की ओर से अजय कुमार शर्मा को नोटिस जारी कर उनका पक्ष जानने को भी कहा गया था।

इस पूरे मामले पर क्या बोले वन मंत्री

बरेली में मौजूद सूबे के वन मंत्री अरुण कुमार सक्सेना से जब दैनिक भास्कर की टीम ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी अजय कुमार शर्मा के भ्रष्टाचार और उन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने को लेकर जब सवाल पूछा तो इस पर अरुण कुमार सक्सेना कुछ भी बोलने से बचते रहे।

विभाग के ACS भी मौन

इस पूरे मामले में वन एंव पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की चुप्पी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। जून 2021 में मनोज कुमार सिंह को वन एवं पर्यावरण विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाया गया और जुलाई 2021 में ही अजय कुमार शर्मा को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मेंबर सेक्रेटरी का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया।

हाल ही में प्रधान वन संरक्षक ममता संजीव दुबे ने जब अपने रिटायरमेंट से 3 दिन पहले 100 क्षेत्रीय वन अधिकारियों के तबादले नियम विरुद्ध कर दिए तब एसीएस मनोज कुमार सिंह ने ना केवल उन तबादलों को निरस्त किया बल्कि विभागीय जांच भी बैठाई।

लेकिन अजय कुमार शर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं वन मंत्री भी कह रहे हैं कि इस मामले में ACS भी कोई बयान देंगे।

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