प्रतिमाओं के खंडित होने के बाद भी होती है उनकी पूजा, जानें इस मंदिर का रहस्य

भरत तिवारी/जबलपुर. विश्वप्रसिद्ध जबलपुर में 64 योगिनी मंदिर के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा. इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी कई कहानियां और कई किस्से भी प्रचलित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज भी मंदिर के अंदर कुछ ऐसे अनसुलझे रहस्य छिपे हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है.

पूरे भारत में भोलेनाथ के कई चमत्कारिक शिवलिंग और पूर्ण स्वरुप वाली प्रतिमाएं आपने देखी होंगी, लेकिन भोलेनाथ और मां पार्वती की नंदी पर सवार एक साथ विवाह वाला दुर्लभ स्वरूप पूरे भारत में सिर्फ जबलपुर के 64 योगिनी मंदिर में ही स्थित है. मां पारवती और भोलेनाथ का यह दुर्लभ स्वरूप वाली प्रतिमा 8वीं शताब्दी की बताई जाती है. खास बात तो यह है कि मंदिर में अलग अलग समय की प्रतिमाएं मौजूद हैं. कोई 8वीं शताब्दी की है तो कोई 1100 ईस्वी की.

खंडित होने के बाद भी की जाती है यहां 64 योगिनियों की पूजा
इतिहास में वर्णन है कि मुग़ल शासनकाल के दौरान मुग़ल राजा औरंगज़ेब ने मंदिर में हमला कर दिया था और मंदिर में मौजूद सभी 64 योगिनियों की मूर्तियों को खंडित कर दिया था. मंदिर में स्थित पुजारी के मुताबिक, सभी 64 योगिनियों में एक भ्रामरी देवी थीं, जिन्होंने मधुमख्खी का स्वरुप धर मुग़ल सेना को गर्वग्रह में प्रवेश करने से पहले ही भगा दिया है. सभी 64 योगिनियों के बीच एक ऐसी प्रतिमा भी स्थित है जो पूरे मंदिर में सबसे अलग पत्थर से बनी हुई है, जिसे गुलाबी भी कहा जाता है.

देवी मां की यह प्रतिमा दूसरी शताब्दी की बताई जाती है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार खंडित प्रतिमाओं की पूजा नहीं की जाती है, लेकिन इस मंदिर में प्रतिदिन सभी योगिनियों की यथावत पूजा अर्चना की जाती है. मंदिर के पुजारी के मुताबिक सभी मंदिरों में हर योगिनी की प्रतिमा के नीचे श्री यन्त्र स्थापित है जिसके ऊपर सभी विद्याएं विराजित हैं वो सही सलामत हैं इसलिए खंडित होने के बाद भी प्रतिमाओं की पूजा यथावत की जाती है.

आखिर कौन है इस ऐतिहासिक धरोहर के निर्माण के पीछे
मंदिर के पुजारी इस मंदिर की पांचवी पीढ़ी हैं. उन्होंने बताया कि भारत के इतिहास में रहे राजा सालिवाहन द्वारा इस ऐतिहासिक मंदिर का निर्माण करवाया गया था. जिस पर्वत पर मंदिर बना हुआ है उसे भृगु ऋषि की तपो भूमि भी कहा जाता है और भृगु ऋषि ने ही इस जगह पर 64 योगिनियों का आवाहन किया था. इसलिए उन्हीं की याद में राजा सालिवाहन द्वारा इस मंदिर के यहां निर्माण करवाया गया था.

आज भी मंदिर के द्वार पर एक गुफा बानी हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी गुफा के रस्ते रानी दुर्गावती यहां आया करती थीं. जिसका मुंह आज भी जबलपुर के गोपालपुर गांव में देखने को मिलता है. मंदिर में आज भी धतूरे, बेल और अकौआ के पौधे अपने आप ही उगते हैं ना उन्हें पानी देने की ज़रूरत पड़ती है और ना ही कोई पौधा और पेड़ मुरझाता है. इतनी बड़ी तादाद में अपने आप यह पेड़ कैसे यहां उगते हैं यह आज भी कई लोगों के लिए के कहानी है. अपने दुर्लभ स्वरुप में आज भी भोलेनाथ और मां पार्वती सहित सभी देवियां यहां अपने भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए हुए हैं.

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