रामकुमार नायक/रायपुर. छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति और लोकपर्वों के नाम से जाना जाता है. छेरछेरा त्योहार छत्तीसगढ़ का लोक पर्व है. नई फसल को काटने की खुशी में इसे मनाया जाता है. गांव में जब किसान धान की कटाई और मिसाई पूरी कर लेते हैं. लगभग 2 महीने फसल को उगाने से लेकर घर तक लाने में जो जी-तोड़ मेहनत करते हैं. उसके बाद फसल को समेट लेने की खुशी में इस त्यौहार को मनाया जाता है. इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छेरछेरा त्योहार राजधानी स्थित ऐतिहासिक दूधाधारी मठ में मनाया.
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छेरछेरा मांगने आने की सूचना मिलते ही मंदिर परिसर में तैयारी की गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दूधाधारी मठ में स्थित स्वयम्भू बजरंग बली और श्री राम जानकी का दर्शन कर पूजा अर्चना की, इसके अलावा छेरछेरा पर्व पर पूरे प्रदेश वासियों को बधाई दी. उक्त अवसर पर दूधाधारी मठ के प्रमुख महंत डॉ राजेश्री रामसुंदर दास ने विधिवत छेरछेरा पर्व की नेक स्वरूप एक टोकरी धान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दान में दिया.
भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से मांगी थी भिक्षा
इस दिन ‘छेरछेरा, कोठी के धान ला हेरहेरा‘ बोलते हुए गांव के बच्चे, युवा और महिलाएं खलिहानों और घरों में जाकर धान और भेंट स्वरूप प्राप्त पैसे इकट्ठा करते हैं और इकट्ठा किए गए धान और राशि से साल भर के लिए कार्यक्रम बनाते हैं. यह नई फसल के घर आने की खुशी में पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इसी दिन मां शाकम्भरी जयंती भी मनाई जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 26, 2024, 17:06 IST