भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की सेवानिवृत्त अधिकारी मीरान चड्ढा बोरवंकर ने सोमवार को कहा कि राजनीतिक नेताओं, बिल्डरों, नौकरशाहों और पुलिस के बीच साठगांठ होती है, इसलिए बिल्डरों को दी गई सरकारी जमीनों की समीक्षा करने की जरूरत है।
बोरवंकर ने अपनी किताब में दावा किया है कि पुणे के तत्कालीन जिला मंत्री (स्पष्ट रूप से अजित पवार के संदर्भ में) ने 2010 में एक नीलामी के बाद पुलिस की यरवडा में तीन एकड़ जमीन को एक बिल्डर को देने पर जोर दिया था। इसके बाद उपजे विवाद के बाद उनकी उक्त टिप्पणी आई है।
किताब में, बोरवंकर ने दावा किया कि उन्होंने बिल्डर को जमीन देने का विरोध किया था और उसके बारे में बताया है कि सीबीआई ने 2जी टेलीकॉम घोटाले में उसे आरोपी बनाया था।
उनसे पूछा गया कि अगर वह अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाती हैं तो अजित पवार की अगुवाई वाला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गुट उन्हें मानहानि का नोटिस भेजने के बारे में सोच रहा है, तो बोरवंकर ने कहा कि वे नोटिस भेज सकते हैं।
पुणे की पूर्व पुलिस आयुक्त ने दिल्ली में कहा, “किताब किसी ने नहीं पढ़ी। बिना किताब पढ़े सुर्खी दे दी गई कि पुलिस की जमीन अजितदादा ने नीलाम कर दी, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हुआ था। तत्कालीन संभागीय आयुक्त (दिलीप बंड) ने जिम्मेदारी ली है कि जमीन की नीलामी उन्होंने कराई थी।”
बोरवंकर ने कहा, यह एकमात्र मामला नहीं है। हम सभी जानते हैं कि बिल्डर सरकारी जमीनों के लिए होड़ करते हैं लेकिन ऐसी जमीनों की सुरक्षा करना और सार्वजनिक हित के लिए इसका उपयोग करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
उन्होंने बताया कि भूमि हस्तांतरण के मुद्दे को लेकर ‘शाहिद बलवा’ नामक बिल्डर ने अदालत का रुख किया था।
इस मुद्दे पर राज्य के तत्कालीन गृह मंत्री (आरआर पाटिल) के रुख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि उन्होंने गृह सचिव सहित अधिकारियों की एक बैठक बुलाई थी और तर्क दिया था कि जमीन सौंपने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने दावा किया, जब हमने (पुलिस ने) अपनी स्थिति स्पष्ट की कि अगर हम इस जमीन को छोड़ देते हैं, तो कोई भी पुलिस कार्यालय और आवासीय क्वार्टर बनाने के लिए तीन एकड़ का भूखंड नहीं देगा, तो गृह मंत्री ने अपना रुख बदल दिया। इसके बाद अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने अपना फैसला बदल दिया है।
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