पुष्कर से इंदौर आकर पॉपुलर हुआ रबड़ी-मालपुआ, जायके की अमीरी का है मजा

भोपाल. पकवान ऐसा, जो दिख जाए तो मुंह में पानी आ जाए और स्वाद ऐसा, जो जुबां पर लग जाए, तो भले कितना भी छककर खा लो, दिल न भरेगा. जी हां. हम बात कर रहे हैं खानपान में भारतीय सांस्कृतिक विरासत की शान रबड़ी-मालपुआ की. होली, दीपावली, तीज, करवाचौथ हो या दुर्गापूजा, रबड़ी-मालपुआ की प्रसादी के बिना हर त्योहार अधूरा है. आइए जानते हैं पूरे देश को एक ही स्वाद में लबालब करने वाली पॉपुलर भारतीय मिठाई रबड़ी-मालपुआ के मध्य प्रदेश के इंदौर तक पहुंचने और यहां छा जाने की कहानी. जो अमीर खाए या गरीब, सबको जायके की अमीरी का मजा और अहसास देता है.

वैसे तो रबड़ी मालपुआ राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी स्वादों के साथ तैयार किया जाता है. लेकिन इसके पैदा होने और चलन में आने की कहानी शुरू होती है राजस्थान के पुष्कर से. इसकी पॉपुलेरिटी का सफर पुष्कर से चलकर मध्यप्रदेश के इंदौर शहर आकर परवान चढ़ता है. आज पुष्कर के अलावा सबसे ज्यादा इंदौर का मालपुआ पसंद किया जाता है.

पुष्कर के रबड़ी-मालपुआ का स्वाद इंदौरवासियों को खूब भाया
इंदौर में 72 साल पहले 1951 में रबड़ी-मालपुआ बनाने की शुरुआत पुष्कर से आए लाल जी गुप्ता ने की थी. पहले इंदौर के बर्तन बाजार और फिर सराफा में शिवगिरी स्वीट्स नामक मिठाई की दुकान खोलने वाले लालजी गुप्ता द्वारा स्थापित मालपुए-रबड़ी की विरासत को अब उनके पोते रामजी गुप्ता आगे बढ़ा रहे हैं. रामजी गुप्ता के अनुसार दादा के बनाए इस व्यंजन को इंदौर वासियों का खूब प्यार मिला और लोगों की जुबान पर इसका स्वाद सिर चढ़कर बोलने लगा.

कैसे बनाया जाता है रबड़ी-मालपुआ

  • रबड़ी-मालपुआ बनाने के पुष्कर के फार्मूले को मध्यप्रदेश के इंदौर में जस का तस लागू किया जाता है.
  • मसलन पहले दूध का खूब ओटाकर गाढ़ा किया जाता है, फिर उसमें इलायची पाउडर और सिंघाड़े का आटा मिलाकर इतना गाढ़ा कर लिया जाता है कि उसे मालपुए का आकार दिया जा सके.
  • मालपुए को शुद्ध घी में तला जाता है. फिर तलने के बाद उसे चाशनी में डाला जाता है. इसका जायका तब कई गुना और बढ़ जाता है, जब इसमें रबड़ी डाली जाती है.
  • ओटाए हुए दूध में इलायची पाउडर डालकर उसकी लच्छेदार रबड़ी बनाई जाती है.
  • इस रबड़ी को मालपुए में डालकर खाया जाता है, तो यह मालपुआ स्वाद से लबालब हो जाता है, जिसे छककर खाने के बाद भी और खाने को जी चाहता है.
  • अब इंदौर में रबड़ी-मालपुआ की और भी कई दुकानें खुल गई हैं. इंदौर के राजवाड़ा हो या खाने वाली गली, रबड़ी-मालपुआ के चहेते हर जगह मिल जाएंगे.

नेताओं की भी खास पसंद है रबड़ी-मालपुआ
चुनाव के दिनों में ही रबड़ी-मालपुआ की खपत और बढ़ जाती है. मध्यप्रदेश में यह मौसम है चुनाव का. इस साल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए भोपाल के अलावा राजनीति के प्रमुख केन्द्र इंदौर आने-जाने वाले नेताओं की संख्या भी बहुत बढ़ गई है. खास बात यह है कि कोई भी यहां नेता आता है, तो रबड़ी-मालपुए का स्वाद चखे बगैर नहीं जाता है.

त्योहारों की शान है रबड़ी-मालपुआ
होली-दीपावली, तीज, करवाचौथ, गणेश उत्सब हो या दुर्गापूजा या शरद पूर्णिमा का त्योहार. इन दिनों में प्रसादी के तौर पर मालपुए तो घर-घर बनते हैं, लेकिन रबड़ी-मालपुआ का भोग लगाने वाले भक्त की संख्या भी बहुत बड़ी है. मालपुआ और रबड़ी दोनों ही ऐसी मिठाइयां हैं, जो नवरात्रि, दुर्गा पूजा के त्योहारों में विशेष रूप से तैयार की जाती है, क्योंकि दोनों ही देवी पूजा के लिए प्रिय मिठाई के रूप स्थान रखती है. कई स्थानों पर भंडारों में भक्त रबड़ी-मालपुए का ही प्रसाद वितरित करते हैं.

Tags: Food, Indore news

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