पीलीभीत टाइगर रिजर्व में कैसे होता है बाघों का नामकरण! किस्से सुनकर आप भी हो जाएंगे हैरान

सृजित अवस्थी/पीलीभीत : तमाम टाइगर रिजर्व में बाघों के अलग-अलग नाम आपने सुने होगा. जंगल में बाघों के नाम रखे जाने की अलग प्रक्रिया होती है. ये नाम वन विभाग के लोग उनकी पहचान, आसपास के गांव वालों की बात, बाघों की हरकत और अफसरों के ऑब्जरवेशन के आधार पर दिया जाता है. हालांकि.पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों के नामकरण की अलग ही रीत चली आ रही है. यहां जिस गांव में बाघ रेस्क्यू किए जाते हैं उस गांव के नाम पर ही उनका नामकरण कर दिया जाता है.

दरअसल, पीलीभीत जिले में लंबे अरसे से जंगल से सटे इलाकों में मानव वन्यजीव संघर्ष की परिस्थिति बनी रहती हैं. अगर पीलीभीत टाइगर रिजर्व शासन के आंकड़ों की मानें तो टाइगर रिज़र्व घोषित होने के बाद से अब तक पीलीभीत में बाघ के हमले में 34 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं टाइगर रिजर्व बनने से पहले भी ऐसी घटनाएं होती आ रही हैं. टाइगर रिजर्व की घोषणा के बाद से बाघों की सुरक्षा व संरक्षण के लिहाज़ से आबादी में पहुंचे बाघों का रेस्क्यू किया जाता है.

ऐसे होता है बाघों का नामकरण
पीलीभीत में बाघों के नामकरण की भी रोचक कहानी है. पीलीभीत में जिन गांवों ने बाघों ने डेरा जमाया उन्हीं गांवों के नाम पर बाघों का नाम पड़ गया. पूरनपुर इलाके के मल्लपुर में लंबे अरसे तक बाघ का आतंक देखा गया था. रेस्क्यू के दौरान उसका नाम मल्लू पड़ गया. विधिपुर में पकड़ी गई बाघिन का नाम विधि रखा गया. खजुरिया में चहलकदमी करती बाघिन खजूरी कहलाई. वहीं मुस्तफाबाद में दहशत का पर्याय बने बाघ को मुस्तफा नाम दिया गया.

कॉलर आईडी से बनी कॉलर वाली
हाल ही में लंबे अरसे तक आबादी के बीच एक बाघिन की चहलकदमी में पीलीभीत के गांव में देखी जा रही थी. निगरानी के लिहाज से इस बाघिन के गले में सैटेलाइट कॉलर आईडी लगाया की गई थी. इसके बाद उसे बाघिन का नाम कॉलर वाली पड़ गया.

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