सोनिया मिश्रा/ चमोली. पहाड़ की बेटी हो या बेटा उनमें टैलेंट की कमी नहीं है लेकिन संसाधनों के अभाव में कहीं न कहीं वे अपने सपने अधूरे छोड़ बस पहाड़ों तक ही सिमट कर रह जाते हैं. उन्हीं में से एक है पहाड़ों की ये बेटी सरोजनी कोटड़ी, जो ढाई साल से पहाड़ों में दौड़ रही है. इतना ही नहीं, सरोजनी ऊबड़-खाबड़ रास्तों और पहाड़ों में घास की गठरी को पीठ पर लादकर दौड़ती हैं. जिसे देख लोग उसे किसी सुपर गर्ल से कम नहीं समझते हैं. वह अल्ट्रा मैराथन (अल्ट्रा रनिंग) में देश और उत्तराखंड का नाम रोशन करना चाहती हैं. अल्ट्रा मैराथन 50 किलोमीटर की दौड़ को कहा जाता है.
उत्तराखंड के चमोली जिले के दूरस्थ ब्लॉक देवाल के चौड़ गांव की 20 वर्षीय सरोजनी अपनी मेहनत और लगन से तमाम पहाड़ की बेटियों के लिए एक मिसाल पेश कर रही हैं. 8 भाई-बहनों के बीच पली बढ़ी सरोजनी 6 बहनों में से पांचवें नंबर की हैं. उनकी प्रारंभिक पढ़ाई गांव के प्राथमिक विद्यालय से हुई है और फिर उन्होंने इंटरमीडिएट राजकीय इंटर कॉलेज बोरोगाड़ से 2020 में किया.
टूट गया था सेना में शामिल होने का सपना
सरोजनी बताती हैं कि बचपन से ही उनका सपना भारतीय सेना में शामिल होकर देश सेवा करना था लेकिन अनफिट होने के कारण उनका यह सपना बस सपना रहकर रह गया. जिसके बाद उन्होंने स्पोर्ट्स में शामिल होकर देश के लिए मेडल लेने का सोच . जिसके लिए वह लगातार ढाई साल से दौड़ रही हैं. वह बताती हैं कि उन्होंने इनकी शुरुआत 5 किलोमीटर की दौड़ से की थी और ढाई साल बाद अब वह 52 किलोमीटर तक लगातार दौड़ चुकी हैं. यह दौड़ रुद्रप्रयाग के कोटेश्वर मंदिर से चिरबटिया तक 52 किमी की थी, जिसमें उन्होंने पहले नंबर पर आकर रिकॉर्ड बनाया था. साथ ही पुलवामा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए भी वह बेरेगाड़ से नारायणबगड़ तक 50 किमी तक दौड़ लगा चुकी हैं.
सरकार और जनता से की मदद की अपील
सरोजनी कहती हैं कि वह आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से ताल्लुक रखती हैं. साथ ही संसाधनों का अभाव भी बना रहता है. जिसके चलते उन्हें खुद से ही तैयारी करनी पड़ती है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार और जनता उन्हें सहयोग करती है, तो वह देश और राज्य के लिए स्पोर्ट्स में अच्छा मुकाम हासिल कर सकती हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 5, 2023, 19:27 IST