अनुज गौतम/सागर. पितृपक्ष का समापन 14 अक्टूबर को पितृमोक्ष अमावस्या पर होगा. इस दिन विधि-विधान से जाने-अनजाने सभी पितरों का श्राद्ध तर्पण कर पितरों को विदाई दी जाएगी. सागर में चकराघाट सहित अन्य जलाशयों के घाटों पर पहुंचकर लोग अपने पितरों का तर्पण कर उनके नाम से जरूरतमंदों को दान करेंगे. इसके बाद दिन भर श्राद्ध कर्म चलते रहेंगे. शाम को मंदिरों एवं जलाशयों के किनारे दीप जलाकर सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाएगी. जो लोग पूरे 16 दिन तर्पण नहीं कर सके, वह पितृ मोक्ष अमावस्या पर तर्पण कर सकते हैं.
पं.केशव महाराज ने बताया कि पितृमोक्ष अमावस्या के मौके पर ऐसे लोग जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथियों का ज्ञान नहीं है और जिनकी अकाल मौत हुई है, उन सभी का तर्पण करने का विधान है. ऐसे सभी लोग अमावस्या पर तर्पण करने घाटों पर पहुंचे. पं. यशोवर्धन चौबे ने बताया कि जो ज्ञात-अज्ञात लोगों का श्राद्ध नहीं कर सके हैं, वह अमावस्या पर कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि श्राद्ध कर्म दोपहर में 3 बजे तक हो जाना चाहिए, जो लोग 16 दिन तक तर्पण करने विभिन्न घाटों पर पहुंचे हैं, उन्हें उन्हीं जलाशयों या अन्य पवित्र नदियों में कुशा का विसर्जन करना चाहिए. इस दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी श्राद्ध करना चाहिए.
पीपल की पूजा करने से पितृ देव प्रसन्न होंगे
पं. शिवनारायण शास्त्री के अनुसार सर्व पितृमोक्ष अमावस्या के दिन पीपल की पूजा का विशेष महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पीपल की पूजा करने से पितृ देवता प्रसन्न होते हैं. इस दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए सुबह प्रातः काल में उठकर स्नान करना चाहिए और उसके बाद सुबह पीपल के पेड़ को स्पर्श कर उसकी पूजा अर्चना करें. पूजा करने के लिए किसी तांबे के बर्तन में गंगा जल, दूध, काले तिल, शहद और घी मिलाकर पूजा की जाती है. इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराने से परिवार की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. वहीं शाम के समय पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे गाय के घी और आटे से बने दीपक को जलाना चाहिए. पीपल में माता लक्ष्मी का वास होता है और भी शाम के समय उसमें निवास करती हैं. शाम के समय दीपक जलाने से शनि दोष से जुड़े दोश से भी मुक्ति मिलेगी.
पितृ मोक्ष अमावस्या पर यह काम याद से कर लें
ज्योतिषाचार्य पंडित राम गोविंद शास्त्री के अनुसार पितृपक्ष की अमावस्या तिथि 13 अक्टूबर को रात 9 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 14 अक्टूबर को रात 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगी. अतः शनिवार को ही उदयातिथि में अमावस्या पर पितरों को विदाई दी जाएगी. इसके लिए दरवाजे पर जो आटे से चरण चिन्ह अंदर की तरफ आते हुए बनाए जा रहे हैं. अमावस्या पर वह पद चिन्ह बाहर जाते हुए बनेंगे. अमावस्या को तर्पण में दूध की जगह दही और शहद का प्रयोग होगा. अर्थात खट्टा-मीठा खिलाकर पितरों को विदा किया जाएगा.
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FIRST PUBLISHED : October 13, 2023, 10:34 IST