पिता ने छोड़ दी थी बेटे के जिंदा होने की आस, 25 साल बाद घर लौटा

मोहन प्रकाश/सुपौल. एक समय था जब अपना काम कराने के लिए बड़े व्यापारी, सामंत और राजा-महाराजा गुलामों की खरीद-बिक्री किया करते थे. जिससे आजीवन केवल खाना एवं कपड़ा देकर मजदूरी कराते थे. उन्हें काम के बदले ना तो कोई सुविधा मिलती थी और ना ही मेहनताना दिया जाता था. समय बीतने के साथ ही गुलामी की प्रथा पर खत्म हो गई.

आजादी के बाद देश में सामंतों और जमींदारों के बीच बंधुआ मजदूरी कराने की प्रथा भी समाप्त हो गई. लेकिन आजादी के 75 वर्ष के बाद सुपौल में एक ऐसा ही मामला सामने आया है. यहां के एक बालक को जालंधर में 25 साल तक गुलाम बनाकर रखा गया.

परिचित ने ही शहाबुद्दीन को बेचा

दरअसल, जिले के पिपरा प्रखंड अंतर्गत कटैया माहे पंचायत के कटैया गोठ वार्ड-13 निवासी मो. शमशुल उर्फ लालू मियां का बेटा मो. शहाबुद्दीन 25 वर्ष बाद घर लौटा है. अब जो उसने बीते 25 वर्षों की दास्तां लोगों को बताई तो, तो सभी लोग सकते में आ गए. दरअसल, वर्ष 1998 में मो. शहाबुद्दीन मात्र 10 वर्ष के थे.

गांव के ही ठठेरी अग्मी दास के जदिया निवासी दामाद ने मो. शहाबुद्दीन केपरिजनों को 500 रुपए दिया और दो हजार रुपए प्रतिमाह तनख्वाह दिलाने का झांसा देकर मद्रास लेकर चला गया. पहले तो 15 दिनों तक घूम-धूम कर जेवर की तेजाब से सफाई करने का काम कराया. इसके बाद जालंधर के मानक पिंड गली नंबर-12 निवासी रामेंद्र सिंह के हाथों इसे बेच दिया. दूसरी ओर मो. शमशुल को चिट़्ठी भेज कर बता दिया कि उसका बेटा कहीं भाग गया है. वे लोग उसे खोज रहे हैं.

तनख्वाह मांगने पर मालिक ने कहा-तुम्हें खरीदा

शहाबुद्दीन ने बताया कि जालंधर में बेचे जाने का उसे आभास तक नहीं था. वहीं के किसान रामेन्द्र के घर रह कर मवेशी को खिलाने, उसकी देखरेख, खेतीबाड़ी सहित घर का सारा काम करता था. कुछ दिन बीतने के बाद जब उसने मेहनताना मांगा, तो उसे रामेन्द्र सिंह ने बताया कि मैंने तुम्हे खरीदा है. इसलिए तनख्वाह नहीं मिलेगी. यह सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई. इस दौरान मालिक रामेन्द्र सिंह उसे केवल खाना एवं कपड़े देता था. वह उस पर 24 घंटे कड़ी नजर भी रखता था कि कहीं मौका पाकर भाग ना जाए.

मालिक की बेटी की शादी में मौका देख भागा

मौके की तलाश में एक-दो नहीं, पूरे 25 वर्ष बीत गए. इस बीच बीते 20 अक्टूबर को रामेन्द्र सिंह की बेटी की शादी थी. इसी दौरान वह माैका पाकर भाग निकला और जैसे-तैसे त्रिवेणीगंज के करमेनिया गांव पहुंच गया. जहां पूरी कहानी बताने पर स्थानीय ग्रामीणों ने इसकी जानकारी उसके माता-पिता को फोन के माध्यम से दी. इधर, 25 वर्ष बाद बेटे के लौटने की आस छोड़ चुके पिता को जब खबर मिली तो वह पत्नी के साथ करमेनिया पहुंचे. जहां पहले तो पिता ने उसे पहचानने से इनकार दिया. लेकिन जब शाहबुद्दीन नेअपने बचपन से जुड़ी बातें बताई, तो उसके पिता को यकीन हो गया कि उनका खोया हुआ बेटा ही है.

मां को था बेटे के लौटने का यकीन

शाहबुद्दीन की मां अमीना खातून ने कहा कि उनके शौहर को यकीन हो चला था कि उनका बेटा अब दुनिया में नहीं है. वह अब कभी नहीं लौटेगा. लेकिन इतना लंबा समय बीतने के बाद भी अमीना को यकीन था कि उसका बेटा जीवित है और एक दिन वह घर जरूर लौटेगा. यही बात वह अपने शौहर से कहा करती थी.

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