पिता को भाया ‘बेटे’ का आइडिया, लोन लेकर शुरू किया केले की चिप्स बनाना, 25 लोगों को दे रहे रोजगार

नीरज कुमार/बेगूसराय : केले से तैयार चिप्स बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक बेहद पसंद करते हैं. केरल, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों में केले से बने चिप्स का काफी प्रचलन है. यहां के लोग इस चिप्स को बड़े चाव से खाते हैं. अब धीरे-धीरे इसका प्रचलन बिहार में भी बढ़ने लगा है.

चाय के साथ अगर स्नैक्स में केले के चिप्स खाने के लिए मिल जाएं तो मज़ा आ जाता है. पीले कलर के केले से बने चिप्स अब सभी जगह आसानी से मिल जाते हैं. हालांकि अब केले से बने चिप्स का उत्पादन बिहार में भी होने लगा है. इसके लिए बाकायदा फैक्ट्री भी लगाया जा रहा है. बेगूसराय के वीरेंद्र महतो ने अपने बेटे के कहने पर इसकी फैक्ट्री लगाई है और अभी पड़ोस के चार जिलों में सप्लाई कर रहे हैं.

बैंक से कर्ज लेकर शुरू किया स्टार्टअप

वीरेंद्र महतो ने लोकल 18 से बताया कि इस व्यवसाय का आईडिया बेटा से मिला. जब बेटा मेडिकल की तैयारी करने बंगलौर गया तो वहां केला से तैयार चिप्स के डिमांड को देखकर इसकी फैक्ट्री खोलने का आईडिया पाया. इसके बाद फोन पर चिप्स तैयार करने की फैक्ट्री लगाने का आग्रह किया. वीरेंद्र ने बताया कि बेटे के कहने पर बिहार के बेगूसराय जिला स्थित बरौनी जंक्शन के पास आभा चिप्स नामक फैक्ट्री की शुरुआत की है.

पिछले एक वर्षों से इस फैक्ट्री का संचालन कर रहे हैं. इस फैक्ट्री के संचालन में निजी क्षेत्र की बैंक ने 20 लाख का लोन दिया. इसी लोन के पैसे से 16 लाख 42 हजार 621 रुपए खर्च कर फैक्ट्री का संचालन शुरू किया. शुरुआत के दो महीने में तकरीबन 3 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ. लेकिन धीरे-धीरे बाजार में चिप्स की डिमांड बढ़ने लगा. अब इस फैक्ट्री में 25 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं.

ऐसे बनता है केले का चिप्स


वीरेंद्र महतो ने बताया कि जिला के किसानों से केला कच्चा खरीद कर लाते हैं. इसके बाद मशीन में नमक और पानी डालकर केले की स्लाइस को 1-2 मिनट तक पकाते हैं. इस प्रक्रिया का अनुसरण कर मामूली मेहनत में चिप्स बनकर तैयार हो जाता है. चिप्स की खासियत यह है कि इसमें प्रयोग होने वाले मसाले गुजरात से मंगाए जाते हैं. इसे मिलाकर पैकेट में 5 और 10 रुपए का पैक बनाकर बाजार में उपलब्ध करा दिया जाता है.

हर माह 50 हजार तक की हो रही है कमाई


वीरेंद्र महतो ने बताया कि फैक्ट्री में काम कर रहे सीवान के रहने वाले संजीत कुमार यादव ने बताया कि आईटी सहायक के रूप में यहां काम करते हैं और पैकिंग का निर्माण देखते हैं. इस काम के एवज में सप्ताह में चार छुट्टी और 25 हज़ार सैलेरी मिल जाती है. वहीं यहां काम करने वाली ललिता देवी ने बताया कि यहां काम अपने 6 अन्य साथियों के साथ मिलकर करते हैं और इस काम के बदले में प्रत्येक महीने 10 हजार मिल जाता है. वहीं आमदनी का जिक्र करते हुए वीरेंद्र महतो ने मुस्कुराते हुए बताया कि हर माह 50 हजर तक की कमाई हो जाती है.

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