पारस में अब नहीं कोई ‘जूस’… सियासी गणित से समझिये चिराग के भारी पड़ने की इनसाइड स्टोरी

हाइलाइट्स

हाजीपुर सीट चिराग पासवान की एलजेपी आर के खाते में.
बिहार एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान अब खत्म.
पशुपति कुमार पारस की जेपी नड्डा-अमित शाह से होगी मीटिंग.

पटना. हाजीपुर सीट चिराग पासवान ने हासिल कर ली है. ऐसे में हाजीपुर सीट पर दावा ठोकने वाले केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस अब क्या करेंगे? चिराग पासवान की सीटें फाइनल होने के बाद पारस कैंप में हलचल तेज हो गई है. पार्टी के सभी सांसदों के साथ पशुपति पारस की बैठक हुई और पार्टी की आगे की रणनीति पर चर्चा हुई आज लोजपा पारस गुट की संसदीय बोर्ड की बैठक संभावित है. वहीं पशुपति पारस ने कहा कि वह अपनी सभी सीटों पर कायम हैं. हाजीपुर से वही चुनाव लड़ेंगे और इस मुद्दे पर आज गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनकी बात होगी. हालांकि, राजनीतिक के जानकार पारस की स्थिति को कुछ और ही सियासी कोण से देखते हैं.

बता दें कि चिराग पासवान को हाजीपुर सीट दिए जाने को लेकर हाजीपुर में चिराग पासवान के समर्थकों ने आतिशबाजी की. ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न मनाते दिखे. चिराग समर्थको ने दावा किया कि चिराग पासवान हाजीपुर से पिता रामविलास पासवान से भी बड़ी जीत दर्ज करेंगे और हाजीपुर में चिराग युग की शुरुआत होने जा रही है. जाहिर है चिराग पूरी तरह से उस विरासत को संभालने के लिए आगे कदम बढ़ा चुके हैं जिसे उनके पिता राम विलास पासवान ने अपने भाई पशुपति कुमार पारस को सौंपी थी.

पारस को लेकर भाजपा में संशय नहीं

राजनीति की जानकार कहते हैं कि पशुपति कुमार पारस को लेकर अब भाजपा नेतृत्व के मन में किसी भी प्रकार का संशय नहीं है, क्योंकि उनसे लगातार बातचीत होती रही और उनको मनाने की कोशिश भी की जाती रही. लेकिन, जब पारस ने हाजीपुर सीट को लेकर किसी भी समझौते से इनकार कर दिया तो भाजपा नेतृत्व में अपना फैसला सुना दिया. दरअसल, भाजपा नेता चिराग पासवान में भविष्य की राजनीति को देखते हैं जो कि अब पशु पशुपति कुमार पारस में बिल्कुल भी नहीं है.

चिराग की लोकप्रियता देख रही भाजपा

राजनीति के जानकार कहते हैं कि पशुपति कुमार पारस की उम्र भी हो चली है और जनाधार के स्तर पर रामविलास पासवान के नाम की विरासत छोड़ उनके पास कुछ भी ऐसा नहीं जो वह भाजपा नेताओं को प्रभावित कर पाएं. राजनीतिक जमीन के हालात भी यही बताते हैं कि पशुपति कुमार पारस का वह जनाधार नहीं है जो कि चिराग पासवान का है. चिराग पासवान की सभाओं में उमड़ती भीड़ इस बात की तस्दीक भी करती है. दलित वर्ग का एक बहुत बड़ा तबका चिराग पासवान में अपना भविष्य देखता है और उसे नायक मानता है.

वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार पारस

दरअसल, पशुपति कुमार पारस अपनी इस स्थिति के लिए स्वत: ही जिम्मेदार हैं. भाजपा नेताओं के सूत्रों की मानें तो उनको कई ऑफर दिए गए. यहां तक कि राज्यपाल बनाने तक के ऑफर दिए गए. राज्यसभा सीट का भी ऑफर किया गया. लेकिन वह अपनी जिद पर पड़े रहे हाजीपुर सीट को लेकर वह टस से मस नहीं हुए. हाजीपुर सीट को लेकर उनकी आशक्ति ने अंत में यह हाल कर दिया है कि पारस अब भाजपा नेताओं के गुड फेथ में हैं या नहीं, कहा नहीं जा सकता है. पांच साल तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहने के बाद भी पारस की स्थिति असहज हो गई है.

एनडीए के लिए बिग बूस्ट होगा चिराग

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार की दोनों सभाओं में केंद्रीय मंत्री होने के नाते पशुपति कुमार पारस की उपस्थिति रही, लेकिन उनकी यह उपस्थित क्या उनकी स्थिति को भी सहज करती है. एनडीए में ऐसा बिल्कुल ही नहीं है. राजनीति के जानकार कहते हैं कि भाजपा नेतृत्व इस बात को भली-भांति समझ चुकी है कि चिराग पासवान के आने से एनडीए के वोटों की संख्या में 5 से 6% का इजाफा निश्चित ही संभव है, जो कि एनडीए को बिग बूस्ट होगा. जाहिर तौर पर भाजपा नेताओं ने इशारा कर दिया है कि पशुपति कुमार पारस में अब कोई ‘जूस’ नहीं बचा है.

Tags: Bihar News, Bihar politics, BJP chief JP Nadda, Chirag Paswan, Loksabha Elections, Pashupati Kumar Paras

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