देश की राजधानी दिल्ली समेत नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद और गाजियाबाद साल के ज्यादातर समय दमघोटू हवा से परेशान रहते हैं. सर्दी के मौसम में तो यहां सांस लेना ही दूभर हो जाता है. कभी इस वायु प्रदूषण का कारण हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलाई जाने वाली पराली होती है तो कभी वाहनों का धुआं इसकी वजह मानी जाती है. अब विशेषज्ञों का कहना है कि इन सब के अलावा पाकिस्तान भी दिल्ली-एनसीआर की हवा में जहर घोलने के लिए जिम्मेदार है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, जब लाहौर में प्रदूषण होता है तो उसका असर दिल्ली की हवा पर भी नजर आने लगता है. दरअसल, पाकिस्तान के पूर्व में बसा लाहौर अपनी खराब हवा के लिए दुनियाभर में बदनाम है. जहरीली हवा के कारण यहां हजारों लोग बीमार होते हैं. वहीं, कभी-कभी लाहौर में वायु प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि दर्जनों विमान कम दृश्ता के कारण उड़ान ही नहीं भर पाते हैं. कुछ समय पहले स्मॉग को हटाने के लिए लाहौर में कृत्रिम बारिश भी करवाई गई, लेकिन कोई फायदा नहीं मिल पाया.
दिल्ली तक कैसे पहुंचता है लाहौर का प्रदूषण?
लाहौर के लिए फैक्ट्रियों और वाहनों के धुएं से पार पाना मुश्किल नजर आने लगा है. वहीं, स्थानीय मौसमी हालात और भोगौलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि वायु प्रदूषण को साफ करना नामुमकिन के बराबर है. जब लाहौर में हवा पूर्व की ओर बहने लगती है, तो वहां का धुआं आसानी से सीमा लांघकर भारत की ओर चला आता है. सर्दियों के मौसम में जब ठंडी हवाएं चलती हैं तो दिल्ली के वायु प्रदूषण में 30 फीसदी तक योगदान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का रहता है.
लाहौर के लिए फैक्ट्रियों और वाहनों के धुएं से पार पाना मुश्किल नजर आने लगा है.
लाहौर के प्रदूषण से कैसे निपटे भारत सरकार?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत सरकार को दिल्ली-एनसीआर में लाहौर की वजह से होने वाले वायु प्रदूषण से निपटना है तो पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा. कई शोध रिपोर्ट कहती हैं कि एशिया दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों का घर है. वहीं, एशिया महाद्वीप में मौजूद छह एयरशेड यहां की हवा पर काफी असर डालते हैं. इसलिए महाद्वीप के सभी देशों के बीच सहयोग के जरिये ही इस समस्या से निपटा जा सकता है. लेकिन, भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच मौजूदा राजनीतिक माहौल के कारण आपसी सहयोग वायु प्रदूषण से बड़ी समस्या बनेगा.
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‘भारत-पाक को प्रदूषण पर करनी चाहिए बात’
डायचे वेले की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में एक गैरसरकारी संस्था सस्टेनेबल डेवेलपमेंट पॉलिसी इंस्टिट्यूट में विश्लेषक आबिद सुलेरी कहते हैं कि तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े लोग इस मामले में एकराय हैं कि वायु प्रदूषण को सीमा पार करने से कोई नहीं रोक सकता है. भारत लगातार वायु प्रदूषण को कम करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान कोई कोशिश नहीं कर रहा है. वह कहते हैं कि दोनों देश बेशक सीधे बात ना करें, लेकिन क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के दौरान दोनों सरकारों को प्रदूषण के मसले पर पर्दे के पीछे ही सही, लेकिन बात करनी चाहिए. एयरशेड मैनेजमेंट के लिए क्षेत्रीय स्तर पर एक योजना की जरूरत है.
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वायु प्रदूषण नहीं बन पाता है चुनावी मुद्दा
नई दिल्ली के थिंक टैंक सस्टेनेबल फ्यूचर्स कॉलैबेरेटिव में फेलो भार्गव कृष्णा कहते हैं कि भारत में प्रदूषण चुनावी नहीं है. हालांकि, क्षेत्रीय चुनावों में कभी-कभी प्रदूषण हटाने के वादे जरूर किए जाते हैं. बता दें कि 2020 में दिल्ली विधानसभा के चुनावों के दौरान हर पार्टी के घोषणापत्र में वायु प्रदूषण की रोकथाम एक मुद्दा था. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि महाद्वीप के सभी देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है. उन्हें साझे लक्ष्य और उपाय तय करने होंगे, जो सभी जगह लागू किए जा सकें. सभी को एक जैसे वायु गुणवत्ता मानक अपनाने की भी जरूरत है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान में 1.5 अरब से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण की मार झेल रहे हैं.
जब लाहौर में हवा पूर्व की ओर बहने लगती है, तो वहां का धुआं आसानी से भारत चला आता है.
‘दक्षिण एशिया अपनाए यूरोप का मॉडल’
अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक साल में 2.20 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है. लाहौर की सड़कों पर 67 लाख वाहन हर दिन निकलते हैं. इससे पूरा शहर स्मॉग की चपेट में आ जाता है. लाहौर में सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. ख्वार अब्बास चौधरी डीडब्ल्यू से कहते हैं कि ये कभी खूबसूरत शहर हुआ करता था. अब वायु प्रदूषण के कारण उनके अस्पताल एवरकेयर में सांस के रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है. वह कहते हैं कि दोनों देशों के लोगों को साथ आना होगा ताकि दोनों तरफ के नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाया जा सके. बेंगलुरु में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी में शोधकर्ता प्रतिमा सिंह कहती हैं कि दक्षिण एशियाई देश आपसी सहयोग के लिए यूरोपीय संघ जैसा मॉडल अपना सकते हैं, इसके तहत यूरोपीय संघ के देश प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियों और नीतियों पर चर्चा करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 27, 2024, 18:56 IST