पहाड़ के किसानों के लिए मुनाफे का सौदा फूलों की खेती, इन फ्लावर की खूब डिमांड

कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल. उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पारंपरिक खेती के इतर फ्लोरीकल्चर तेजी से बढ़ती कृषि पद्धति है. इसमें व्यवसायिक रूप से फूलों की खेती की जाती है. वर्तमान समय में फूलों की डिमांड काफी अधिक है. कट फ्लावर से लेकर लूज फ्लावर तक की मार्केट में अच्छी खपत है. ऐसे में युवा इसे स्वरोजगार के रूप में भी अपना सकते हैं. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ते हुए नजर आ रहे हैं. इसके पीछे की एक बड़ी वजह जंगली जानवरों का आतंक है क्योंकि जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं. इससे अब किसान भी खेती करने से कतरा रहे हैं. ऐसे में अब पर्वतीय क्षेत्रों में फ्लोरीकल्चर को लेकर भी बढ़ावा दिया जा रहा है. उत्तराखंड में फूलों की खेती की अपार संभावनाएं हैं. यहां का वातावरण विभिन्न प्रकार के फूलों के लिए उपयुक्त है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा काश्तकार फ्लोरीकल्चर को आजीविका के रूप में अपना सकते हैं.

ट्यूलिप, गुलाब और गेंदे की खेती फायदेमंद

गढ़वाल विश्वविद्यालय के उद्यानिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ तेजपाल सिंह बिष्ट बताते हैं कि उत्तराखंड एक कृषि प्रदेश है. यहां की मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त है. ऐसे में अगर काश्तकार फूलों की खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाते हैं, तो यह लाभदायक साबित हो सकता है. उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र गेंदा, ट्यूलिप, गुलाब, रोजमेरी समेत कई वैरायटी के फूलों की खेती के लिए अच्छा है. फूलों की खेती को जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

कट फ्लावर व लूज फ्लावर की डिमांड

प्रोफेसर बिष्ट बताते हैं कि उत्तराखंड अध्यात्म की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. यहां चार धामों के अलावा सैकड़ों मठ-मंदिर हैं, जहां पूजा-अर्चना से लेकर साज सज्जा के लिए फूलों की जरूरत होती है. ऐसे में यहां लूज फ्लावर की डिमांड अधिक रहती है. वहीं डेकोरेशन से लेकर शादी समारोह, बुके बनाने में कट फ्लावर की जरूरत होती है. लिहाजा यहां के काश्तकारों को अपने आसपास ही बाजार मिल जाता है. कई ऐसे फूल हैं, जिनमें कुछ समय अंतराल पर फिर से फ्लावरिंग आ जाती है. ये कट फ्लावर व्यवसाय के लिए अच्छे होते हैं.

फूलों की खेती बनाएगी आर्थिकी मजबूत

उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा कई कंपनियां मेडिसिनल प्रयोग और अन्य उत्पादों के लिए फूलों को खरीदती हैं, जहां काश्तकार अपने फूलों को बेच सकते हैं. डॉ बिष्ट का कहना है कि गढ़वाल विश्वविद्यालय का उद्यानिकी विभाग समय-समय पर ऐसे किसानों को जो बागवानी, फूलों की खेती के प्रति रुचि रखते हैं या फिर इसकी खेती कर रहे हैं, उनके लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाता है, जिससे कि वे और बेहतर तरीके से खेती कर मुनाफा कमा सकें.

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