अरशद खान/देहरादून. हमारे देश में कठपुतली हमेशा से सभी के लिए मनोरंजन का केंद्र रही है. इसके माध्यम से हमारे देश की विभिन्नताएं, संस्कृति और पहनावा भी झलकता है. कठपुतलियों के माध्यम से उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को एक नई पहचान दिलाने का काम कर रहे हैं अल्मोड़ा के रहने वाले दान सिंह फर्त्याल. उत्तराखंड अपनी वेशभूषा और लोक कलाओं को लेकर देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मशहूर है. यहां की लोक कलाओं के माध्यम से उत्तराखंड के कलाकारों ने हर जगह अपनी अलग ही छाप छोड़ी है, लेकिन इसको एक नई पहचान मिले इसके लिए दान सिंह उत्तराखंडी कठपुतली बनाते हैं. इनकी कठपुतलियां उत्तराखंडी पहनावे को दर्शाती हैं और खासतौर पर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की पारंपरिक वेशभूषा में तैयार ये कठपुतलियां सभी का मन मोह लेती हैं.
‘लोकल 18’ से बातचीत में दान सिंह फर्त्याल बताते हैं कि वह पिछले 15 सालों से उत्तराखंड की संस्कृति और लोक विरासत को बचाने का काम कर रहे हैं. उत्तराखंड की संस्कृति और पहनावा हमेशा लोगों को याद रहे, इसके लिए वह पारंपरिक कठपुतली बना रहे हैं. इनके माध्यम से आज की पीढ़ी के बच्चे और युवा उत्तराखंड की संस्कृति को भली भांति पहचान सकेंगे.
राजस्थानी कठपुतली देख आया आइडिया
दान सिंह ने बताया कि उन्होंने राजस्थान की पारंपरिक कठपुतलियां देखी हैं, जिन्होंने उन्हें काफी ज्यादा प्रेरित किया. राजस्थान की पारंपरिक कठपुतलियां वहां की वेशभूषा, वहां की संस्कृति और वहां के पारंपरिक आभूषणों को दर्शाती हैं. उन्हें उन कठपुतलियों को देखकर अपनी उत्तराखंड की संस्कृति और वेशभूषा पर कठपुतलियां बनाने का आइडिया आया और तभी से उन्होंने राज्य की संस्कृति और पहनावे से जुड़ी कठपुतलियां बनाना शुरू कर दिया.
पेपर वेस्ट और केमिकल से बनाते हैं कठपुतली
दान सिंह नव बताया कि वह उत्तराखंडी कठपुतलियों को पेपर वेस्ट से बनाकर तैयार करते हैं. इसे बनाने में वह केमिकल का भी इस्तेमाल करते हैं. वह अपनी कठपुतलियों को बेचते नहीं हैं, लेकिन जब भी उन्हें सार्वजनिक मंचों और मेलों में इनकी प्रदर्शनी का मौका मिलता है तो जरूर दिखाते हैं. पपेट तैयार होने के बाद इनके लिए उत्तराखंडी वस्त्र और आभूषण तैयार किए जाते हैं. यह पूरी प्रक्रिया हाथ से की जाती है.
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FIRST PUBLISHED : December 4, 2023, 16:29 IST