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वॉशिंगटन3 मिनट पहले
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ओडिसियस साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करेगा। ये एक खाई के करीब समतल यानी प्लेन जगह है। इसे मेलापर्ट कहा गया है।
अमेरिका की प्राइवेट कंपनी इंट्यूटिव मशीन्स का रोबोटिक स्पेसक्राफ्ट लैंडर ओडिसियस कुछ देर में मून लैंडिंग कर सकता है। लैंडिंग से पहले इसके नेविगेशन सिस्टम में कुछ खराबी आई थी। इसके बावजूद लैंडिंग कराई जा रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने गुरुवार रात बताया कि यह लैंडिंग साइट से 57 मील दूर है। अगर सब ठीक रहा तो मून लैंडिंग करने वाला यह किसी प्राइवेट कंपनी का पहला स्पेसक्राफ्ट होगा। स्पेसक्राफ्ट की मून लैंडिंग का समय बार-बार बदला गया है।
यह स्पेसक्राफ्ट मून के साउथ पोल पर उतरने वाला है। NASA की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक, स्पेसक्राफ्ट की स्पीड लैंडिंग से पहले बढ़ी थी। इसलिए ओडिसियस ने मून का एक अतिरिक्त चक्कर लगाया है। एक चक्कर बढ़ने की वजह से समय में बदलाव हुआ । पहले यह भारतीय समय के अनुसार सुबह 4 बजकर 20 मिनट पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला था। बाद में 4 बजकर 54 मिनट लैंडिंग का टाइम बताया गया।
चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला अमेरिका का पहला मिशन अपोलो 17 था। इसकी लैंडिंग 1972 में हुई थी। ओडिसियस की लैंडिंग वैसे तो 14 फरवरी को होनी थी, लेकिन तकनीकी वजहों से इसे टालना पड़ा था।
ओडिसियस की लैंडिंग भारतीय समय के हिसाब से सुबह करीब 4 बजकर 54 मिनट पर होगी। हालांकि, इंट्यूटिव कंपनी हालात को देखते हुए यह समय आगे या पीछे कर सकती है।
इस मिशन से जुड़ी खास बातें
- ओडिसियस की लैंडिंग भारतीय समय के हिसाब से सुबह करीब 4 बजकर 54 मिनिट पर होगी। हालांकि, इंट्यूटिव कंपनी हालात को देखते हुए यह समय आगे या पीछे कर सकती है। लैंडिंग के पहले यह करीब 19 मिनिट हूवर (लैंडिंग वाली जगह के ऊपर घूमना) करेगा। वैसे तो यह प्राईवेट मिशन है, लेकिन इसके पीछे अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का दिमाग है। मिशन में काम आने वाले 6 इंस्ट्रूमेंट्स नासा ने ही तैयार किए हैं।
- ओडिसियस साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करेगा। ये एक खाई के करीब समतल यानी प्लेन जगह है। इसे मेलापर्ट कहा गया है। मेलापर्ट 17वीं सदी के बेल्जियन एस्ट्रोनॉमर थे। हालांकि, तकनीकि तौर पर लैंडिंग स्पॉट को लेकर एक पेंच है। इसकी वजह यह है कि यह जगह मून साउथ पोल की सबसे अहम जगह से 185 मील दूर है।
- दरअसल, अमेरिकी कंपनी साउथ पोल पर लैंडिंग का नाम जरूर बता रही है, लेकिन हकीकत में मून साउथ पोल से यह जगह काफी दूर है। माना जा रहा है कि यहां पानी मौजूद है, लेकिन वो बर्फ के रूप में है।
स्पेसक्राफ्ट के इंजिन स्टार्ट रहेंगे। इसी दौरान यह अपना सर्कल यानी ऑर्बिट पूरा करेगा। इसके बाद सतह के सबसे करीब पहुंचेगा। यह दूरी करीब 6 मील होगी।
लैंडिंग का तरीका
- स्पेसक्राफ्ट के इंजिन स्टार्ट रहेंगे। इसी दौरान यह अपना सर्कल यानी ऑर्बिट पूरा करेगा। इसके बाद सतह के सबसे करीब पहुंचेगा। यह दूरी करीब 6 मील होगी। इसके बाद का पूरा लैंडिंग प्रोसेस रोबिटिक मिशन मोड पर होगा। इसके बाद स्पेसक्राफ्ट धीरे-धीरे सतह की तरफ बढ़ेगा और इसकी स्पीड बिल्कुल कम हो जाएगी।
- लैंडिंग वाली जगह का चुनाव पहले ही कर लिया गया है। स्पेसक्राफ्ट में लगे कैमरे एग्जेक्ट लोकेशन बताएंगे। इन्हें पहले से फीड डेटा से क्रॉस चेक या मैच किया जाएगा। इसके बाद लेजर बीम सरफेस पर डाली जाएंगी। इसके सेंसर्स लैंडिंग स्पॉट पर मौजूद किसी दिक्कत के बारे में बता सकते हैं।
- आखिरी 50 फीट पूरी तरह सेल्फ मोड में होंगे। यानी स्पेसक्राफ्ट खुद लैंडिंग स्पॉट तय करेगा।
- इस स्पेसक्राफ्ट में सोलर पैनल लगे हैं। लैंडिंग के बाद सात दिन तक यह वहीं से चार्ज होगा। इसके बाद दो हफ्ते की रात रहेगी।