पंजाब के फर्जी मुठभेड़ मामले में 31 साल बाद इंसाफ, आरोपियों को उम्रकैद

Punjab News: पंजाब के बहुचर्चित फर्जी एनकाउंटर मामले के पीड़ितों को 31 साल बाद इंसाफ मिला है। CBI की अदालत ने 1992 में हुए फर्जी एनकाउंटर के 3 आरोपियों पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। तीनों आरोपियों पर 2 लाख रुपए जुर्माना भी लगाया गया है।

बता दें कि साल 1992 में पजांब में 3 युवकों हरजीत सिंह, लखविंदर सिंह और जसपिंदर सिंह का 9 पुलिसकर्मियों ने फर्जी एनकाउंटर कर दिया था। आरोपी धर्म सिंह उस समय इंस्पेक्टर, सुरिंदर सिंह और गुरदेव सिंह ASI थे। मामले में CBI द्वारा 57 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। 9 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन 31 सालों में जहां 5 आरोपियों की मौत हो गई, वहीं 27 गवाह भी नहीं रहे।

31 साल बाद मिला पीड़ितों को इंसाफ

मृतक हरजीत सिंह के बेटे रामप्रीत सिंह एक साल के थे, जब उनके पिता का पुलिसवालों ने कत्ल कर दिया था। रामप्रीत सिंह ने बताया कि परिवार एक बार तो हिम्मत हार गया था। लगा था, इंसाफ नहीं मिलेगा, लेकिन दादा ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार कोर्ट में अर्जी लगाते रहे। पूरी जिंदगी उसने अपने पिता के बिना गुजारी है। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। 31 साल बाद पिता को इंसाफ मिला। इतने सालों बाद फैसला आया और दोषियों को सजा भी मिली।

पिता को पता भी नहीं, बेटे का कत्ल हो चुका

फर्जी एंकाउटर में मारे गए मृतक हरजीत सिंह के पिता ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की थी। तब मृतक के पिता को पता ही नहीं था कि पुलिस उनके बेटे का एनकाउंटर कर चुकी है। पिता ने आरोप लगाया था कि उनके बेटे हरजीत सिंह को पुलिस ने 29 अप्रैल 1992 को अमृतसर के सठियाला के पास ठठियां बस स्टैंड से उठाया था और माल मंडी के इंटेरोगेशन सेंटर में रखा था। पुलिस उन्हें गुमराह कर रही थी।

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CBI को हाईकोर्ट ने सौंपी थी जांच

हाईकोर्ट ने इस मामले में तुरंत एक्शन लेते हुए पुलिस की अवैध हिरासत से हरजीत सिंह की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए एक वारंट जारी किया था। मामला आगे बढ़ाते हुए हाईकोर्ट ने दिसंबर 1992 में डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज चंडीगढ़ को इस मामले में न्यायिक जांच करने का आदेश जारी किया था, जिसकी रिपोर्ट 1995 में पेश की गई। रिपोर्ट के आधार पर 30 मई 1997 को हाईकोर्ट ने इस केस की जांच CBI को ट्रांसफर कर दी।

परिजनों को शव भी नहीं दिए गए थे

1998 में CBI ने अपहरण का मामला दर्ज किया। पुलिस ने हरजीत सिंह, दलजीत सिंह उर्फ ​​मोटू, सतबीर सिंह और एक अन्य व्यक्ति का 29 अप्रैल 1992 को बस स्टैंड ठठियां से अपहरण कर लिया था। जांच में पता चला कि 12 मई 1992 को 2 अन्य व्यक्तियों लखविंदर और जसपिंदर सिंह के साथ हरजीत सिंह की भी हत्या कर दी थी। तीनों की हत्या को तत्कालीन SHO पीएस लोपोके के SI धर्मसिंह के नेतृत्व में हुई मुठभेड़ दिखा दिया था। इतना ही नहीं, उनके शवों को भी परिवार को नहीं दिया गया था। पुलिस ने तीनों के शवों को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार कर दिया था।

9 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ थी चार्जशीट

फर्जी एंकाउटर मामले में पंजाब पुलिस के 9 अधिकारियों इंस्पेक्टर धर्म सिंह, SI राम लुभाया, HC सतबीर सिंह, दलजीत सिंह उर्फ ​​मोटू, इंस्पेक्टर हरभजन राम, ASI सुरिंदर सिंह, ASI गुरदेव सिंह, SI अमरीक सिंह और ASI भूपिंदर सिंह के खिलाफ धारा 364, 120-बी, 302 और 218 के तहत आरोप पत्र पेश किया था, लेकिन उनमें से 5 आरोपियों हरभजन राम, राम लुभाया, सतबीर सिंह, दलजीत सिंह और अमरीक सिंह की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। एक आरोपी भूपिंदर सिंह को PO घोषित कर दिया गया। वहीं बचे 3 आरोपियों धर्म सिंह, सुरिंदर सिंह व गुरदेव सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। 2 लाख का जुर्माना भी लगाया है।

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